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शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

हरे! इन चारों में भी शिवरात्रि का व्रत ही सबसे अधिक बलवान् है। इसलिये भोग और मोक्षरूपी फल की इच्छा रखनेवाले लोगों को मुख्यत: उसी का पालन करना चाहिये। इस व्रत को छोड़कर दूसरा कोई मनुष्यों के लिये हितकारक व्रत नहीं है। यह व्रत सबके लिये धर्म का उत्तम साधन है। निष्काम अथवा सकामभाव रखनेवाले सभी मनुष्यों, वर्णों, आश्रमों, स्त्रियों, बालकों, दासों, दासियों तथा देवता आदि सभी देहधारियोंके लिये यह श्रेष्ठ व्रत हितकारक बताया गया है।

माघमास के कृष्णपक्ष में शिवरात्रि तिथि का विशेष माहात्म्य बताया गया है। शुक्लपक्ष से मास का आरम्भ मानने से फालुन मास की कृष्ण त्रयोदशी माघ मास की कही गयी है। जहाँ कृष्णपक्ष से मास का आरम्भ मानते हैं, उनके अनुसार यहाँ माघ का अर्थ फाल्गुन समझना चाहिये। जिस दिन आधी रात के समय तक वह तिथि विद्यमान हो, उसी दिन उसे व्रत के लिये ग्रहण करना चाहिये। शिवरात्रि करोड़ों हत्याओं के पाप का नाश करनेवाली है। केशव! उस दिन सबेरे से लेकर जो कार्य करना आवश्यक है उसे प्रसन्नतापूर्वक तुम्हें बता रहा हूँ; तुम ध्यान देकर सुनो। बुद्धिमान् पुरुष सबेरे उठकर बड़े आनन्द के साथ स्नान आदि नित्यकर्म करे। आलस्य को पास न आने दे। फिर शिवालय में जाकर शिवलिंग का विधिवत् पूजन करके मुझ शिव को नमस्कार करने के पश्चात् उत्तम रीति से संकल्प करे-

संकल्प
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोऽस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रभावाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्याः शत्रवो मां वै पीडा कुर्वन्तु नैव हि।।  

'देवदेव! महादेव! नीलकण्ठ! आपको नमस्कार है। देव! मैं आपके शिवरात्रि-व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूँ। देवेश्वर! आपके प्रभाव से यह व्रत बिना किसी विश्व-बाधा पूर्ण हो और काम आदि शत्रु मुझे पीड़ा न दें।'

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