| ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
अध्याय ३७-३८
भगवान् शिव को संतुष्ट करने वाले व्रतों का वर्णन, शिवरात्रि-व्रत की विधि एवं महिमा का कथन
तदनन्तर ऋषियों के पूछने पर सूतजी ने शिवजी की आराधनाके द्वारा उत्तम एवं मनोवांछित फल प्राप्त करनेवाले बहुत-से महान् स्त्री-पुरुषोंके नाम बताये। इसके बाद ऋषियोंने फिर पूछा- 'व्यासशिष्य! किस व्रत से संतुष्ट होकर भगवान् शिव उत्तम सुख प्रदान करते हैं? जिस व्रतके अनुष्ठान से भक्तजनों को भोग और मोक्ष की प्राप्ति हो सके, उसका आप विशेषरूप से वर्णन कीजिये।'
सूतजीने कहा - महर्षियो। तुमने जो कुछ पूछा है वही बात किसी समय ब्रह्मा, विष्णु तथा पार्वतीजी ने भगवान् शिव से पूछी थी। इसके उत्तरमें शिवजी ने जो कुछ कहा, वह मैं तुमलोगोंको बता रहा हूँ।
भगवान् शिव बोले- मेरे बहुत-से व्रत हैं जो भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले हैं। उनमें मुख्य दस व्रत हैं जिन्हें जाबालश्रुति के विद्वान् 'दश शैवव्रत' कहते हैं। द्विजों को सदा यत्नपूर्वक इन व्रतों का पालन करना चाहिये। हरे! प्रत्येक अष्टमी को केवल रात में ही भोजन करे। विशेषत: कृष्ण-पक्ष की अष्टमी को भोजन का सर्वथा त्याग कर दे। शुक्लपक्ष की एकादशी को भी भोजन छोड़ दे। किंतु कृष्णपक्ष की एकादशी को रात में मेरा पूजन करने के पश्चात् भोजन किया जा सकता है। शुक्लपक्षकी त्रयोदशी को तो रात में भोजन करना चाहिये; परंतु कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को शिवव्रतधारी पुरूषों के लिये भोजन का सर्वथा निषेध है। दोनों पक्षों में प्रत्येक सोमवार को प्रयत्नपूर्वक केवल रात में ही भोजन करना चाहिये। शिव के व्रत में तत्पर रहनेवाले लोगों के लिये यह अनिवार्य नियम है। इन सभी व्रतों में व्रत की पूर्ति के लिये अपनी शक्ति के अनुसार शिवभक्त ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये। द्विजों को इन सब व्रतों का नियमपूर्वक पालन करना चाहिये। जो द्विज इनका त्याग करते हैं, वे चोर होते हैं। मुक्तिमार्ग में प्रवीण पुरुषों को मोक्ष की प्राप्ति करानेवाले चार व्रतों का नियमपूर्वक पालन करना चाहिये। वे चार व्रत इस प्रकार हैं- भगवान् शिव की पूजा, रुद्रमन्त्रों का जप, शिवमन्दिर में उपवास तथा काशी में मरण। ये मोक्ष के सनातन मार्ग हैं। सोमवार की अष्टमी और कृष्णपक्ष की चतुर्दशी - इन दो तिथियों को उपवासपूर्वक व्रत रखा जाय तो वह भगवान् शिव को संतुष्ट करनेवाला होता है, इसमें अन्यथा विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
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