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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


विशालाक्षो मृगव्याध: सुरेश: सूर्यतापन:।
धर्मधाम क्षमाक्षेत्रं भगवान् भगनेत्रभित्।।११।।

७६ विशालाक्षः - बड़े-बड़े नेत्रों वाले, ७७ मृगव्याध: - वन में व्याध या किरात के रूप में प्रकट हो शूकर के ऊपर बाण चलाने वाले, ७८ सुरेश: - देवताओं के स्वामी, 7 सूर्यतापन: - सूर्य को भी ताप देने वाले, ८० धर्मधाम - धर्म के आश्रय, ८१ क्षमाक्षेत्रम् - क्षमा के उत्पत्ति-स्थान, ८२ भगवान् - सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान तथा वैराग्य के आश्रय, ८३ भगनेत्रभित् - भगदेवता के नेत्र का भेदन करनेवाले।।११।।

उग्र: पशुपतिस्तार्क्ष्य: प्रियभक्त: परंतप:।
दाता दयाकरो दक्ष: कपर्दी कामशासन:।।१२।।

८४ उग्र: - संहारकाल में भयंकर रूप धारण करनेवाले, ८५ पशुपति: - मायारूप में बँधे हुए पाशबद्ध पशुओं (जीवों) को तत्त्वज्ञान के द्वारा मुक्त करके यथार्थरूप से उनका पालन करनेवाले, ८६ तार्क्ष्य: - गरूड़रूप, ८७ प्रियभक्त: - भक्तों से प्रेम करनेवाले, ८८ परंतप: - शत्रुता रखने वालों को संताप देनेवाले, ८९ दाता - दानी, १० दयाकर: - दयानिधान अथवा कृपा करनेवाले, ९१ दक्ष: - कुशल, ९२ कपर्दी - जटाजूटधारी, कामशासन: - कामदेव का दमन करनेवाले।।१२।।

श्मशाननिलय: सूक्ष्म: श्मशानस्थो महेश्वर:।
लोककर्ता मृगपतिर्महाकर्ता महौषधि:।।१३।।

श्मशाननिलय: - श्मशानवासी, ९५ सूक्ष्म: -इन्द्रियातीत एवं सर्वव्यापी, ९६ श्मशानस्थ: - श्मशान भूमि में विश्राम करनेवाले, ७ महेश्वर: - महान् ईश्वर या परमेश्वर,  लोककर्ता - जगत्‌ की सृष्टि करनेवाले,  मृगपति: - मृगके पालक या पशुपति, १०० महाकर्ता - विराट् ब्रह्माण्ड की सृष्टि करने के समय महान् कर्तृत्व से सम्पन्न, १०१ महौषधि: - भवरोग का निवारण करने के लिये महान् ओषधिरूप।।१३।।

उत्तरो गोपतिर्गोप्ता ज्ञानगम्य: पुरातन:।
नीति: सुनीति: शुद्धात्मा सोम: सोमरत: सुखी।।१४।।

१०२ उत्तर: - संसार-सागर से पार उतारनेवाले, १०३ गोपति: - स्वर्ग, पृथ्वी, पशु, वाणी, किरण, इन्द्रिय और जल के स्वामी, १०४ गोप्ता - रक्षक, १०५ ज्ञानगम्य: - तत्त्वज्ञान के द्वारा ज्ञानस्वरूप से ही जानने योग्य, १०६ पुरातन: - सबसे पुराने, १०७ नीति: - न्यायस्वरूप, १०८ सुनीति: - उत्तम नीतिवाले, १०९ शुद्धात्मा - विशुद्ध आत्मस्वरूप, ११० सोम: -उमासहित, १११ सोमरत: - चन्द्रमा पर प्रेम रखनेवाले, ११२ सुखी - आत्मानन्द से परिपूर्ण।।१४।।

सोमपोऽमृतप: सौम्यो महातेजा महाद्युति:।
तेजोमयोऽमृतमयोऽन्नमयश्च सुधापति:।।१५।।

११३ सोमप: - सोमपान करने वाले अथवा सोमनाथ रूप से चन्द्रमा के पालक, ११४ अमृतप: - समाधि के द्वारा स्वरूपभूत अमृत का आस्वादन करने वाले, ११५ सौम्य: - भक्तों के लिये सौम्यरूपधारी, ११६ महातेजा: - महान् तेज से सम्पन्न, ११७ महाद्युति: - परमकान्तिमान् , ११८ तेजोमय: -प्रकाशस्वरूप, १११ अमृतमय: - अमृतरूप, १२० अन्नमय: - अन्नरूप, १२१ सुधापति: - अमृत के पालक।।१५।।

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