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शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

सूतजी कहते हैं- ब्राह्मणो! उस समय वहाँ अपने पुत्र को जीवित देखकर उसकी माता घुश्मा को न तो हर्ष हुआ और न विषाद। वह पूर्ववत् स्वस्थ बनी रही। इसी समय उस पर संतुष्ट हुए ज्योतिस्वरूप महेश्वर शिव शीघ्र उसके सामने प्रकट हो गये। 

शिव बोले- सुमुखि! मैं तुमपर प्रसन्न हूँ। वर माँगो। तेरी दुष्टा सौतने इस बच्चे को मार डाला था। अत: मैं उसे त्रिशूल से मारूँगा।

सूतजी कहते हैं- तब घुश्मा ने शिव को प्रणाम करके उस समय यह वर माँगा- 'नाथ! यह सुदेहा मेरी बड़ी बहिन है अत: आपको इसकी रक्षा करनी चाहिये।'

शिव बोले- उसने तो बड़ा भारी अपकार किया है तुम उसपर उपकार क्यों करती हो? दुष्ट कर्म करनेवाली सुदेहा तो मार डालने के ही योग्य है।

घुश्माने कहा- देव! आपके दर्शनमात्र से पातक नहीं ठहरता। इस समय आपका दर्शन करके उसका पाप भस्म हो जाय। 'जो अपकार करने वालों पर भी उपकार करता है उसके दर्शनमात्र से पाप बहुत दूर भाग जाता है।'*

प्रभो! यह अद्भुत भगवद्‌वाक्य मैंने सुन रखा है। इसलिये सदाशिव! जिसने ऐसा कुकर्म किया है वही करे; मैं ऐसा क्यों करूँ (मुझे तो बुरा करनेवाले का भी भला ही करना है)।

अपकारेषु यश्चैव ह्युपकारं करोति वै।
तस्य दर्शनमात्रेण पापं दूरतरं व्रजेत।।

(शि. पु. को. रु. सं. ३३ । २९)

सूतजी कहते हैं- घुश्मा के ऐसा कहने पर दयासिन्धु भक्तवत्सल महेश्वर और भी प्रसन्न हुए तथा इस प्रकार बोले- 'घुश्मे! तुम कोई और भी वर माँगो। मैं तुम्हारे लिये हितकर वर अवश्य दूँगा; क्योंकि तुम्हारी इस भक्ति से और विकारशून्य स्वभाव से मैं बहुत प्रसन्न हूँ।'

भगवान् शिवकी बात सुनकर घुश्मा बोली- 'प्रभो! यदि आप वर देना चाहते हैं तो लोगों की रक्षा के लिये सदा यहाँ निवास कीजिये और मेरे नाम से ही आपकी ख्याति हो।'

तब महेश्वर शिव ने अत्यन्त प्रसन्न होकर कहा- 'मैं तुम्हारे ही नामसे घुश्मेश्वर कहलाता हुआ सदा यहाँ निवास करूँगा और सबके लिये सुखदायक होऊँगा। मेरा शुभ ज्योतिर्लिंग घुश्मेश नामसे प्रसिद्ध हो।

यह सरोवर शिवलिंगों का आलय हो जाय और इसीलिये इसकी तीनों लोकों में शिवालय नाम से प्रसिद्धि हो। यह सरोवर सदा दर्शनमात्र से सम्पूर्ण अभीष्टों का देनेवाला हो। सुव्रते! तुम्हारे वंश में होनेवाली एक सौ एक पीढ़ियों तक ऐसे ही श्रेष्ठ पुत्र उत्पन्न होंगे, इसमें संशय नहीं है। वे सब-के-सब सुन्दरी स्त्री, उत्तम धन और पूर्ण आयु से सम्पन्न होंगे, चतुर और विद्वान् होंगे, उदार तथा भोग और मोक्ष रूपी फल पाने के अधिकारी होंगे। एक सौ एक पीढ़ियों तक सभी पुत्र गुणों में बड़े-चढ़े होंगे। तुम्हारे वंश का ऐसा विस्तार बड़ा शोभादायक होगा।'

ऐसा कहकर भगवान् शिव वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित हो गये। उनकी घुश्मेश नाम से प्रसिद्धि हुई और उस सरोवर का नाम शिवालय हो गया।

सुधर्मा, घुश्मा और सुदेहा-तीनों ने आकर तत्काल ही उस शिवलिंग की एक सौ एक दक्षिणावर्त परिक्रमा की। पूजा करके परस्पर मिलकर मन का मैल दूर करके वे सब वहाँ बड़े सुख का अनुभव करने लगे। पुत्र को जीवित देख सुदेहा बहुत लज्जित हुई और पति तथा घुश्मा से क्षमा-प्रार्थना करके उसने अपने पाप के निवारण के लिये प्रायश्चित्त किया। मुनीश्वरो! इस प्रकार वह घुश्मेश्वर लिंग प्रकट हुआ। उसका दर्शन और पूजन करने से सदा सुख की वृद्धि होती है। ब्राह्मणो! इस तरह मैंने तुमसे बारह ज्योतिर्लिंगों की महिमा बतायी। ये सभी लिंग सम्पूर्ण कामनाओं के पूरक तथा भोग और मोक्ष देनेवाले हैं। जो इन ज्योतिर्लिंगों की कथा को पढ़ता और सुनता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता तथा भोग और मोक्ष पाता है।

0 द्वादश ज्योतिर्लिंगों का माहात्म्य सम्पूर्ण 0

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