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शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

''यह पंचक्रोशी काशी लोक में कल्याणदायिनी, कर्मबन्धन का नाश करनेवाली, ज्ञानदात्री तथा मोक्ष को प्रकाशित करनेवाली मानी गयी है। अतएव मुझे परम प्रिय है। यहाँ स्वयं परमात्माने 'अविमुक्त' लिंग की स्थापना की है। अत: मेरे अंशभूत हरे! तुम्हें कभी इस क्षेत्र का त्याग नहीं करना चाहिये।'' ऐसा कहकर भगवान् हर ने काशीपुरी को स्वयं अपने त्रिशूल से उतार कर मर्त्यलोक के जगत्‌ में छोड़ दिया। ब्रह्माजी का एक दिन पूरा होनेपर जब सारे जगत्‌ का प्रलय हो जाता है तब भी निश्चय ही इस काशीपुरी का नाश नहीं होता। उस समय भगवान् शिव इसे त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और जब ब्रह्मा द्वारा पुन: नयी सृष्टि की जाती है तब इसे फिर वे इस भूतल पर स्थापित कर देते हैं। कर्मों का कर्षण करने से ही इस पुरी को 'काशी' कहते हैं। काशी में अविमुक्तेश्वरलिंग सदा विराजमान रहता है। वह महापातकी पुरुषों को भी मोक्ष प्रदान करनेवाला है। मुनीश्वरो! अन्य मोक्षदायक धामों में सारूप्य आदि मुक्ति प्राप्त होती है। केवल इस काशी में ही जीवों को सायुज्य नामक सर्वोत्तम मुक्ति सुलभ होती है। जिनकी कहीं भी गति नहीं है? उनके लिये वाराणसी पुरी ही गति है। महापुण्यमयी पंचक्रोशी करोड़ों हत्याओं का विनाश करनेवाली है। यहाँ समस्त अमरगण भी मरण की इच्छा करते हैं। फिर दूसरों की तो बात ही क्या है। यह शंकर की प्रिय नगरी काशी सदा भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली है।

कैलास के पति, जो भीतर से सत्त्वगुणी और बाहर से तमोगुणी कहे गये हैं? कालाग्नि रुद्र के नाम से विख्यात हैं। वे निर्गुण होते हुए भी सगुणरूप में प्रकट हुए शिव हैं। उन्होंने बारंबार प्रणाम करके निर्गुण शिव से इस प्रकार कहा।

रुद्र बोले- विश्वनाथ! महेश्वर! मैं आपका ही हूँ, इसमें संशय नहीं है। साम्ब महादेव! मुझ आत्मज पर कृपा कीजिये। जगत्पते! लोकहित की कामना से आपको सदा यहीं रहना चाहिये। जगन्नाथ! मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ। आप यहाँ रहकर जीवों का उद्धार करें।

सूतजी कहते हैं- तदनन्तर मन और इन्द्रियों को वश में रखनेवाले अविमुक्त ने भी शंकर से बारंबार प्रार्थना करके नेत्रों से आँसू बहाते हुए ही प्रसन्नतापूर्वक उनसे कहा।

अविमुक्त बोले- कालरूपी रोग के सुन्दर औषध देवाधिदेव महादेव! आप वास्तव में तीनों लोकों के स्वामी तथा ब्रह्मा और विष्णु आदि के द्वारा भी सेवनीय हैं। देव! काशीपुरी को आप अपनी राजधानी स्वीकार करें। मैं अचिन्त्य सुख की प्राप्ति के लिये यहाँ सदा आपका ध्यान लगाये स्थिरभाव से बैठा रहूँगा। आप ही मुक्ति देनेवाले तथा सम्पूर्ण कामनाओं के पूरक है दूसरा कोई नहीं। अत: आप परोपकार के लिये उमासहित सदा यहाँ विराजमान रहें। सदाशिव! आप समस्त जीवों को संसार-सागर से पार करें। हर ! मैं बारंबार प्रार्थना करता हूँ कि आप अपने भक्तों का कार्य सिद्ध करें।

सूतजी कहते हैं- ब्राह्मणो! जब विश्वनाथ ने भगवान् शंकर से इस प्रकार प्रार्थना की, तब सर्वेश्वर शिव समस्त लोकों का उपकार करने के लिये वहाँ विराजमान हो गये। जिस दिन से भगवान् शिव काशी में आ गये, उसी दिन से काशी सर्वश्रेष्ठ पुरी हो गयी।

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