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शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

सूतजी कहते हैं- ब्राह्मणो! ऐसा कहकर अंजनीनन्दन शिवस्वरूप वानरराज हनुमान्‌जी ने समस्त राजाओं तथा महाराज चन्द्रसेन को भी कृपादृष्टि से देखा। तदनन्तर उन्होंने उस बुद्धिमान् गोपबालक श्रीकर को बड़ी प्रसन्नता के साथ शिवोपासना के उस आचार-व्यवहार का उपदेश दिया, जो भगवान् शिव को बहुत प्रिय है। इसके बाद परम प्रसन्न हुए हनुमान् जी चन्द्रसेन और श्रीकर से बिदा ले उन सब राजाओं के देखते-देखते वहीं अन्तर्धान हो गये। वे सब राजा हर्ष में भरकर सम्मानित हो महाराज चन्द्रसेनकी आज्ञा ले जैसे आये थे, वैसे ही लौट गये। महातेजस्वी श्रीकर भी हनुमान् जी का उपदेश पाकर धर्मज्ञ ब्राह्मणों के साथ शंकरजी की उपासना करने लगा। महाराज चन्द्रसेन और गोपबालक श्रीकर दोनों ही बड़ी प्रसन्नता के साथ महाकाल की सेवा करते थे। उन्हीं की आराधना करके उन दोनों ने परम पद प्राप्त कर लिया। इस प्रकार महाकाल नामक शिवलिंग सत्पुरुषों का आश्रय है। भक्तवत्सल शंकर दुष्ट पुरुषों का सर्वथा हनन करनेवाले हैं। यह परम पवित्र रहस्यमय आख्यान कहा गया है जो सब प्रकार का सुख देनेवाला है। यह शिवभक्ति को बढ़ाने तथा स्वर्ग की प्राप्ति करानेवाला है।

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