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शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

युद्ध के लिये नगर को चारों ओर से घेरकर खड़े हुए राजाओं ने भी प्रातःकाल अपने गुप्तचरों के मुख से वह सारा अद्भुत चरित्र सुना। उसे सुनकर सब आश्चर्य से चकित हो गये और वहाँ आये हुए सब नरेश एकत्र हो आपस में इस प्रकार बोले- 'ये राजा चन्द्रसेन बड़े भारी शिवभक्त हैं; अतएव इन पर विजय पाना कठिन है। ये सर्वथा निर्भय होकर महाकाल की नगरी उज्जयिनी का पालन करते हैं। जिसकी पुरी के बालक भी ऐसे शिवभक्त हैं, वे राजा चन्द्रसेन तो महान् शिवभक्त हैं ही। इनके साथ विरोध करने से निश्चय ही भगवान् शिव क्रोध करेंगे और उनके क्रोध से हम सब लोग नष्ट हो जायँगे। अत: इन नरेश के साथ हमें मेल-मिलाप ही कर लेना चाहिये। ऐसा होने पर महेश्वर हमपर बड़ी कृपा करेंगे।'

सूतजी कहते हैं- ब्राह्मणो! ऐसा निश्चय करके शुद्ध हृदयवाले उन सब भूपालों ने हथियार डाल दिये। उनके मन से वैरभाव निकल गया। वे सभी राजा अत्यन्त प्रसन्न हो चन्द्रसेन की अनुमति ले महाकाल की उस रमणीय नगरी के भीतर गये। वहाँ उन्होंने महाकाल का पूजन किया। फिर वे सब-के-सब उस ग्वालिन के महान् अभ्युदयपूर्ण दिव्य सौभाग्य की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए उनके घर पर गये। वहाँ राजा चन्द्रसेन ने आगे बढ्‌कर उनका स्वागत-सत्कार किया। वे बहुमूल्य आसनों पर बैठे और आश्चर्यचकित एवं आनन्दित हुए। गोपबालक के ऊपर कृपा करने के लिये स्वत: प्रकट हुए शिवालय और शिवलिंग का दर्शन करके उन सब राजाओं ने अपनी उत्तम बुद्धि भगवान् शिव के चिन्तन में लगायी। तदनन्तर उन सारे नरेशों ने भगवान् शिव की कृपा प्राप्त करने के लिये उस गोपशिशु को बहुत-सी वस्तुएँ प्रसन्नतापूर्वक भेंट कीं। सम्पूर्ण जनपदों में जो बहुसंख्यक गोप रहते थे, उन सबका राजा उन्होंने उसी बालक को बना दिया। इसी समय समस्त देवताओं से पूजित परम तेजस्वी वानरराज हनुमानजी वहाँ प्रकट हुए। उनके आते ही सब राजा बड़े वेग से उठकर खड़े हो गये। उन सबने भक्तिभाव से विनम्र होकर उन्हें मस्तक झुकाया। राजाओं से पूजित हो वानरराज हनुमानजी उन सबके बीच में बैठे और उस गोपबालक को हृदय से लगाकर उन नरेशों की ओर देखते हुए बोले- 'राजाओ! तुम सब लोग तथा दूसरे देहधारी भी मेरी बात सुनें। इससे तुम लोगों का भला होगा। भगवान् शिव के सिवा देहधारियों के लिये दूसरी कोई गति नहीं है। यह बड़े सौभाग्य की बात है कि इस गोपबालक ने शिव की पूजा का दर्शन करके उससे प्रेरणा ली और बिना मन्त्र के भी शिव का पूजन करके उन्हें पा लिया। गोपवंश की कीर्ति बढ़ानेवाला यह बालक भगवान् शंकर का श्रेष्ठ भक्त है। इस लोक में सभी भोगों का उपभोग करके अन्त में यह मोक्ष प्राप्त कर लेगा। इसकी वंशपरम्परा के अन्तर्गत आठवीं पीढ़ी में महायशस्वी नन्द उत्पन्न होंगे, जिनके यहाँ साक्षात् भगवान् नारायण उनके पुत्ररूप से प्रकट हो श्रीकृष्ण नाम से प्रसिद्ध होंगे। आज से यह गोपकुमार इस जगत्‌ में श्रीकर के नाम से विशेष ख्याति प्राप्त करेगा।'

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