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शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

उसी समय रत्नमाल पर्वतपर दूषण नामक एक धर्मद्वेषी असुर ने ब्रह्माजी से वर पाकर वेद, धर्म तथा धर्मात्माओं पर आक्रमण किया। अन्तमें उसने सेना लेकर अवन्ति (उज्जैन) के ब्राह्मणों पर भी चढ़ाई कर दी। उसकी आज्ञा से चार भयानक दैत्य चारों दिशाओं में प्रलयाग्नि के समान प्रकट हो गये, परंतु वे शिवविश्वासी ब्राह्मण बन्धु उनसे डरे नहीं। जब नगर के ब्राह्मण बहुत घबरा गये, तब उन्होंने उनको आश्वासन देते हुए कहा-'आपलोग भक्तवत्सल भगवान् शंकर पर भरोसा रखें।' यों कह शिवलिंग का पूजन करके वे भगवान् शिव का ध्यान करने लगे।

इतने में ही सेनासहित दूषण ने आकर उन ब्राह्मणों को देखा और कहा- 'इन्हें मार डालो, बाँध लो।' वेदप्रिय के पुत्र उन ब्राह्मणों ने उस समय उस दैत्य की कही हुई वह बात नहीं सुनी; क्योंकि वे भगवान् शम्भु के ध्यानमार्ग में स्थित थे। उस दुष्टात्मा दैत्य ने ज्यों ही उन ब्राह्मणों को मारने की इच्छा की, त्यों ही उनके द्वारा पूजित पार्थिव शिवलिंग के स्थान में बड़ी भारी आवाज के साथ एक गड्ढा प्रकट हो गया। उस गड्ढे से तत्काल विकटरूपधारी भगवान् शिव प्रकट हो गये, जो महाकाल नाम से विख्यात हुए। वे दुष्टों के विनाशक तथा सत्पुरुषों के आश्रयदाता हैं। उन्होंने उन दैत्यों से कहा- 'अरे खल! मैं तुझ-जैसे दुष्टों के लिये महाकाल प्रकट हुआ हूँ। तुम इन ब्राह्मणों के निक टसे दूर भाग जाओ।'

ऐसा कहकर महाकाल शंकर ने सेनासहित दूषण को अपने हुंकारमात्र से तत्काल भस्म कर दिया। कुछ सेना उनके द्वारा मारी गयी और कुछ भाग खड़ी हुई। परमात्मा शिव ने दूषण का वध कर डाला। जैसे सूर्य को देखकर सम्पूर्ण अन्धकार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार भगवान् शिव को देखकर उसकी सारी सेना अदृश्य हो गयी। देवताओं की दुन्दुभियाँ बज उठीं और आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। उन ब्राह्मणों को आश्वासन दे सुप्रसन्न हुए स्वयं महाकाल महेश्वर शिव ने उनसे कहा- 'तुमलोग वर माँगो।' उनकी वह बात सुनकर वे सब ब्राह्मण हाथ जोड़ भक्ति-भाव से भलीभांति प्रणाम करके नतमस्तक हो बोले।

द्विजों ने कहा- महाकाल! महादेव! दुष्टों को दण्ड देनेवाले प्रभो! शम्भो! आप हमें संसारसागर से मोक्ष प्रदान करें। शिव! आप जनसाधारण की रक्षा के लिये सदा यहीं रहें। प्रभो! शम्भो! अपना दर्शन करने वाले मनुष्यों का आप सदा ही उद्धार करें।

सूतजी कहते हैं- महर्षियो! उनके ऐसा कहने पर उन्हें सद्गति दे भगवान् शिव अपने भक्तों की रक्षा के लिये उस परम सुन्दर गड्ढे में स्थित हो गये। वे ब्राह्मण मोक्ष पा गये और वहाँ चारों ओर की एक-एक कोस भूमि लिंगरूपी भगवान् शिव का स्थल बन गयी। वे शिव भूतलपर महाकालेश्वर के नाम से विख्यात हुये। ब्राह्मणो! उनका दर्शन करने से स्वप्न में भी कोई दुःख नहीं होता। जिस-जिस कामना को लेकर कोई उस लिंग की उपासना करता है उसे वह अपना मनोरथ प्राप्त हो जाता है तथा परलोक में मोक्ष भी मिल जाता है।

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