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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

ऐसी दशा में तुझे अब तप का फल कैसे प्राप्त होगा? उस बाण को ले लेने से तू तप से क्षत तथा कृतघ्न हो जायगा; क्योंकि निश्चय ही यह मेरे स्वामी का बाण है और तेरी रक्षा के लिये ही उन्होंने इसे छोड़ा था। इस बाण से तो उन्होंने शत्रु को मार ही डाला और फिर बाण को भी सुरक्षित रखा। तू तो महान् कृतघ्न तथा तपस्या में अमंगल करनेवाला है। जब तू सत्य नहीं बोल रहा है तब फिर इस तप से सिद्धि की अभिलाषा कैसे करता है? अथवा यदि तुझे बाण से ही प्रयोजन है तो मेरे स्वामी से माँग ले। वे स्वयं इस प्रकार के बहुत-से बाण तुझे दे सकते हैं। मेरे स्वामी आज यहाँ वर्तमान हैं। तू उनसे क्यों नहीं याचना करता? तू जो उपकार का परित्याग करके अपकार करना चाहता है तथा अभी-अभी कर रहा है यह तेरे लिये उचित नहीं है। तू चपलता छोड़ दे।'

इसपर कुपित होकर अर्जुन ने उससे कई बातें कहीं। दोनोंमें बड़ा विवाद हुआ। अन्त में अर्जुन ने कहा-'वनचारी भील! तू मेरी सार बात सुन ले। जिस समय तेरा स्वामी आयेगा, उस समय मैं उसे उसका फल चखाऊंगा। तेरे साथ युद्ध करना तो मुझे शोभा नहीं देता, अत: मैं तेरे स्वामी के साथ ही लोहा-लूंगा; क्योंकि सिंह और गीदड़ का युद्ध उपहासास्पद ही माना जाता है। भील! तूने मेरी बात तो सुन ही ली, अब तू मेरे महान् बल को भी देखेगा। जा, अपने स्वामी के पास लौट जा अथवा जैसी तेरी इच्छा हो, वैसा कर।'

नन्दीश्वरजी कहते हैं- मुने! अर्जुन के यों कहनेपर वह भील जहाँ शिवावतार सेनापति किरात विराजमान थे, वहाँ गया और उन भिल्लराज से अर्जुन का सारा वचन विस्तारपूर्वक कह सुनाया। उसकी बात सुनकर उन किरातेश्वर को महान् हर्ष हुआ। तब भीलरूपधारी भगवान् शंकर अपनी सेना के साथ वहाँ गये। उधर पाण्डुपुत्र अर्जुन ने भी जब किरात की उस सेना को देखा, तब वे भी धनुष-बाण ले सामने आकर डट गये। तदनन्तर किरात ने पुन: उस दूत को भेजा और उसके द्वारा भरतवंशी महात्मा अर्जुन से यों कहलवाया।

किरातने कहा- तपस्विन्! तनिक इस सेना की ओर तो दृष्टिपात करो। अरे! अब तुम बाण छोड़कर जल्दी भाग जाओ। क्यों तुम इस समय एक सामान्य काम के लिये प्राण गँवाना चाहते हो? तुम्हारे भाई दुःख से पीड़ित हैं स्त्री तो उनसे भी बढ़कर दुःखी है। मेरा तो ऐसा विचार है कि ऐसा करने से पृथ्वी भी तुम्हारे हाथ से चली जायगी।

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