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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

अध्याय ३९

किरातावतार के प्रसंग में मूक नामक दैत्य का शूकररूप धारण करके अर्जुन के पास आना, शिवजी का किरातवेष में प्रकट होना और अर्जुन तथा किरातवेषधारी शिव द्वारा उस दैत्य का वध

नन्दीश्वरजी कहते हैं- मुने! तदनन्तर अर्जुन व्यासजी के उपदेशानुसार विधिपूर्वक स्नान तथा न्यास आदि करके परम भक्ति के साथ शिवजी का ध्यान करने लगे। उस समय वे एक श्रेष्ठ मुनि की भांति एक ही पैर के बलपर खड़े हो सूर्य की ओर एकाग्र दृष्टि करके खड़े-खड़े मत्न जप कर रहे थे। इस प्रकार वे परम प्रेमपूर्वक मन-ही-मन शिवजी का स्मरण करके शम्भु के सर्वोत्कृष्ट पंचाक्षरमन्त्र का जप करते हुए घोर तप करने लगे। उस तपस्या का ऐसा उत्कृष्ट तेज प्रकट हुआ, जिससे देवगण विस्मित हो गये। पुन: वे शिवजी के पास गये और समाहित चित्त से बोले।

देवताओं ने कहा- सर्वेश! एक मनुष्य आपके लिये तपस्या में निरत है। प्रभो! वह व्यक्ति जो कुछ चाहता है उसे आप दे क्यों नहीं देते?

नन्दीश्वरजी कहते हैं- मुने! यों कहकर देवताओं ने अनेक प्रकार से उनकी स्तुति की। फिर उनके चरणों की ओर दृष्टि लगाकर वे विनम्रभाव से खड़े हो गये। तब उदारबुद्धि एवं प्रसन्नात्मा महाप्रभु शिवजी उस वचन को सुनकर ठठाकर हँस पड़े और देवताओं से इस प्रकार बोले।

शिवजी ने कहा- देवताओ! अब तुमलोग अपने स्थान को लौट जाओ। मैं सब तरह से तुमलोगों का कार्य सम्पन्न करूँगा। यह बिलकुल सत्य है इसमें संदेह की गुंजाइश नहीं है।

नन्दीश्वरजी कहते हैं- मुने! शम्भु के उस वचन को सुनकर देवताओं को पूर्णतया निश्चय हो गया। तब वे सब अपने स्थान को लौट गये। इसी समय मूक नामक दैत्य शूकर का रूप धारण करके वहाँ आया। विप्रेन्द्र! उसे उस समय मायावी दुरात्मा दुर्योधन ने अर्जुन के पास भेजा था। वह जहाँ अर्जुन स्थित थे, उसी मार्ग से अत्यन्त वेगपूर्वक पर्वतशिखरों को उखाड़ता, वृक्षों को छिन्न-भिन्न करता तथा अनेक प्रकार के शब्द करता हुआ आया। तब अर्जुन की भी दृष्टि उस मूक नामक असुरपर पड़ी, वे शिवजी के पादपद्मों का स्मरण करके यों विचार करने लगे।

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