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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

अध्याय ३२

शिव के सुरेश्वरावतार की कथा, उपमन्यु की तपस्या और उन्हें उत्तम वर की प्राप्ति

नन्दीश्वर कहते हैं- सनत्कुमारजी! अब मैं परमात्मा शिव के सुरेश्वरावतार का वर्णन करूँगा, जिन्होंने धौम्य के बड़े भाई उपमन्यु का हितसाधन किया था। उपमन्यु व्याघ्रपाद मुनि के पुत्र थे। उन्होंने पूर्वजन्म में ही सिद्धि प्राप्त कर ली थी और वर्तमान जन्म में मुनिकुमार के रूप में प्रकट हुए थे। वे शैशवावस्था से ही माता के साथ मामा के घरमें रहते थे और दैववश दरिद्र थे। एक दिन उन्हें बहुत कम दूध पीने को मिला। इसलिये अपनी माता से वे बारंबार दूध माँगने लगे। उनकी तपस्विनी माता ने घर के भीतर जाकर एक उपाय किया। उंछवृत्ति से लाये हुए कुछ बीजों को सिलपर पीसा और उन्हें पानी में घोलकर कृत्रिम दूध तैयार किया। फिर बेटे को पुचकार कर वह उसे पीने को दिया। माँ के दिये हुए उस नकली दूध को पीकर बालक उपमन्यु बोले- 'यह तो दूध नहीं है।' इतना कहकर वे फिर रोने लगे। बेटे का रोना-धोना सुनकर माँ को बड़ा दुःख हुआ। अपने हाथ से उपमन्यु की दोनों आँखें पोंछकर उनकी लक्ष्मी-जैसी माता ने कहा- 'बेटा! हमलोग सदा वन में निवास करते हैं। हमें यहाँ दूध कहाँ से मिल सकता है। भगवान् शिव की कृपा के बिना किसी को दूध नहीं मिलता। वत्स! पूर्वजन्म में भगवान् शिव के लिये जो कुछ किया गया है वर्तमान जन्म में वही मिलता है।'

माता की यह बात सुनकर उपमन्यु ने भगवान् शिव की आराधना करने का निश्चय किया। वे तपस्या के लिये हिमालय पर्वतपर गये और वहाँ वायु पीकर रहने लगे। उन्होंने आठ ईंटों का एक मन्दिर बनाया और उसके भीतर मिट्टी के शिवलिंग की स्थापना करके उसमें माता पार्वती सहित शिव का आवाहन किया। तत्पश्चात् जंगल के पत्र-पुष्प आदि ले आकर भक्तिभाव से पंचाक्षर-मन्त्र के उच्चारणपूर्वक साम्ब शिव की पूजा करने लगे। माता पार्वती और शिव का ध्यान करके उनकी पूजा करने के पश्चात् वे पंचाक्षर मन्त्र का जप किया करते थे। इस तरह दीर्घकाल तक उन्होंने बड़ी भारी तपस्या की।

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