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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

इस प्रकार ब्राह्मणी को उपदेश देकर भिक्षु (श्रेष्ठ संन्यासी-का शरीर धारण करनेवाले भक्तवत्सल शिव ने उसे अपने उत्तम स्वरूप का दर्शन कराया। उन्हें साक्षात् शिव जानकर ब्राह्मण पत्नी ने प्रणाम किया और प्रेम से गद्‌गदवाणी द्वारा उनकी स्तुति की। तत्पश्चात् भगवान् शिव वहीं अन्तर्धान हो गये। उनके चले जाने पर ब्राह्मणी उस बालक को लेकर अपने पुत्र के साथ घर को चली गयी। एकचक्रा नाम के सुन्दर ग्राम में उसने घर बना रखा था। वह उत्तम अन्न से अपने बेटे तथा राजकुमार का भी पालन-पोषण करने लगी। यथासमय ब्राह्मणों ने उन दोनों का यज्ञोपवीत-संस्कार कर दिया। वे दोनों शिव की पूजा में तत्पर रहते हुए घर पर ही बड़े हुए। शाण्डिल्य मुनि के उपदेश से नियमपरायण हो वे दोनों शुभ व्रत रखकर प्रदोषकाल में शंकरजी की पूजा करते थे। एक दिन द्विजकुमार राजकुमार को साथ लिये बिना ही नदी में स्नान करने के लिये गया। वहाँ उसे निधि से भरा हुआ एक सुन्दर कलश मिल गया। इस प्रकार भगवान् शंकर की पूजा करते हुए उन दोनों कुमारों का उसी घर में एक वर्ष व्यतीत हो गया। तदनन्तर एक दिन राजकुमार उस ब्राह्मण कुमार के साथ वन में गया। वहाँ अकस्मात् एक गन्धर्व कन्या आ गयी। उसके पिता ने वह कन्या राजकुमार को दे दी। गन्धर्व-कन्या से विवाह करके राजकुमार निष्कण्टक राज्य भोगने लगे। जिस ब्राह्मण पत्नी ने पहले अपने पुत्र की भांति उसका पालन-पोषण किया था, वही उस समय राजमाता हुई और वह ब्राह्मणकुमार उसका भाई हुआ। राजा का नाम धर्मगुप्त था। इस प्रकार देवेश्वर शिव की आराधना करके राजा धर्मगुप्त अपनी उस रानी के साथ विदर्भदेश में राजोचित सुख का उपभोग करने लगा। यह मैंने तुमसे शिव के भिक्षुवर्य अवतार का वर्णन किया है जिन्होंने राजा धर्मगुप्त को बाल्यकाल में सुख प्रदान किया था। यह पवित्र आख्यान पापहारी, परम-पावन, चारों पुरुषार्थों का साधक तथा सम्पूर्ण अभीष्ट को देनेवाला है। जो प्रतिदिन एकाग्रचित्त होकर इसे सुनता या सुनाता है, वह इस लोक में सम्पूर्ण भोगों का उपभोग करके अन्त में भगवान् शिव के धाम में जाता है।

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