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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

निर्जन वन में उस बालक को देखकर ब्राह्मणी को बड़ा विस्मय हुआ और वह मन-ही-मन विचार करने लगी- 'अहो! यह मुझे इस समय बडे आश्चर्य की बात दिखायी देती है कि यह नवजात शिशु, जिसकी नाल भी अभी तक नहीं कटी है पृथ्वी पर पड़ा हुआ है। इसकी माँ भी नहीं है। पिता आदि दूसरे कोई सहायक भी यहाँ नहीं दिखायी देते। क्या कारण हो गया? न जाने यह किसका पुत्र है? इसे जाननेवाला यहाँ कोई भी नहीं है जिससे इसके जन्म के विषय में पूछूँ। इसे देखकर मेरे हृदय में करुणा उत्पन्न हो गयी है। मैं इस बालक का अपने औरस पुत्र की भांति पालन-पोषण करना चाहती हूँ। परंतु इसके कुल और जन्म आदि का ज्ञान न होने के कारण इसे छूनेका साहस नहीं होता।'

ब्राह्मणी जब इस प्रकार विचार कर रही थी, उस समय भक्तवत्सल भगवान् शंकर ने बड़ी कृपा की। बड़ी-बड़ी लीलाएँ करनेवाले महेश्वर एक संन्यासी का रूप धारण करके सहसा वहाँ आ पहुँचे, जहाँ वह ब्राह्मणी संदेह में पड़ी हुई थी और यथार्थ बात को जानना चाहती थी। श्रेष्ठ भिक्षु का रूप धारण करके आये हुए करुणानिधान शिव ने उससे हँसकर कहा-'ब्राह्मणी! अपने चित्त में संदेह और खेद को स्थान न दो। यह बालक परम पवित्र है। तुम इसे अपना ही पुत्र समझो और प्रेमपूर्वक इसका पालन करो।'

ब्राह्मणी बोली- प्रभो! आप मेरे भाग्य से ही यहाँ पधारे हैं। इसमें संदेह नहीं कि मैं आपकी आज्ञा से इस बालक का अपने पुत्र की ही भांति पालन-पोषण करूँगी; तथापि मैं विशेषरूप से यह जानना चाहती हूँ कि वास्तव में यह कौन है किसका पुत्र है और आप कौन है जो इस समय यहाँ पधारे हैं। भिक्षुवर! मेरे मनमें बार-बार यह बात आती है कि आप करुणासिन्धु शिव ही हैं और यह बालक पूर्वजन्म में आपका भक्त रहा है। किसी कर्मदोष से यह इस दुरवस्था में पड़ गया है। इसे भोगकर यह पुन: आपकी कृपा से परम कल्याण का भागी होगा। मैं भी आपकी माया से ही मोहित हो मार्ग भूलकर यहाँ आ गयी हूँ। आपने ही इसके पालन के लिये मुझे यहाँ भेजा है।

भिक्षुप्रवर शिव ने कहा- ब्राह्मणी! सुनो, यह बालक शिवभक्त विदर्भराज सत्यरथ का पुत्र है। सत्यरथ को शाल्व देशीय क्षत्रियों ने युद्ध में मार डाला है। उनकी पत्नी अत्यन्त व्यग्र हो रात में शीघ्रतापूर्वक अपने महल से बाहर भाग आयीं। उन्होंने यहाँ आकर इस बालक को जन्म दिया। सबेरा होने पर वे प्यास से पीड़ित हो सरोवर में उतरीं। उसी समय दैववश एक ग्राह ने आकर उन्हें अपना आहार बना लिया।

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