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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

अध्याय ३१

भगवान् शिव के भिक्षुवर्यावतार की कथा, राजकुमार और द्विजकुमार पर कृपा

नन्दीश्वर कहते हैं- मुनिश्रेष्ठ! अब तुम भगवान् शम्भु के नारी-संदेहभंजक भिक्षु-अवतार का वर्णन सुनो, जिसे उन्होंने अपने भक्त पर दया करके ग्रहण किया था। विदर्भ देश में सत्यरथ नाम से प्रसिद्ध एक राजा थे, जो धर्म में तत्पर, सत्यशील और बड़े-बड़े शिवभक्तों से प्रेम करनेवाले थे। धर्मपूर्वक पृथ्वी का पालन करते हुए उनका बहुत-सा समय सुखपूर्वक बीत गया। तदनन्तर किसी समय शाल्वदेश के राजाओं ने उस राजा की राजधानी पर आक्रमण करके उसे चारों ओर से घेर लिया। बलोन्मत्त शाल्वदेशीय क्षत्रियों के साथ, जिनके पास बहुत बड़ी सेना थी, राजा सत्यरथ का बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। शत्रुओं के साथ दारुण युद्ध करके उनकी बड़ी भारी सेना नष्ट हो गयी। फिर दैवयोग से राजा भी शाल्वों के हाथ से मारे गये। उन नरेश के मारे जानेपर मरने से बचे हुए सैनिक मन्त्रियों सहित भय से विह्वल हो भाग खड़े हुए। मुने! उस समय विदर्भराज सत्यरथ की महारानी शत्रुओं से घिरी होने पर भी कोई प्रयत्न करके रात के समय अपने नगर से बाहर निकल गयीं। वे गर्भवती थीं; अत: शोक से संतप्त हो भगवान् शंकर के चरणारविन्दों का चिन्तन करती हुई वे धीरे-धीरे पूर्वदिशा की ओर बहुत दूर चली गयीं। सबेरा होने पर रानी ने भगवान् शंकर की दया से एक निर्मल सरोवर देखा। उस समय तक वे बहुत दूर का रास्ता तय कर चुकी थीं। सरोवर के तटपर आकर वे सुकुमारी रानी एक छायादार वृक्ष के नीचे बैठ गयीं। भाग्यवश उसी निर्जन स्थान में वृक्षके नीचे ही रानी ने उत्तम गुणोंसे युक्त शुभ मुहूर्तमें एक दिव्य बालक को जन्म दिया, जो सभी शुभ लक्षणों से सम्पन्न था। दैववश उस बालक की जननी महारानी को बड़े जोर की प्यास लगी। तब वे पानी पीने के लिये उस सरोवर में उतरीं। इतने में ही एक बड़े भारी ग्राह ने आकर रानी को अपना ग्रास बना लिया। वह बालक पैदा होते ही माता-पिता से हीन हो गया और भूख-प्यास से पीड़ित हो उस तालाब के किनारे जोर-जोर से रोने लगा। इतने में ही उस पर कृपा करके भगवान्‌ महेश्वर वहाँ आ गये और उस शिशु की रक्षा करने लगे। उन्हीं की प्रेरणा से एक ब्राह्मणी अकस्मात् वहाँ आ गयी। वह विधवा थी, घर-घर भीख माँगकर जीवन-निर्वाह करती थी और अपने एक वर्ष के बालक को गोद में लिये हुए उस तालाब के तटपर पहुंची थी। उसने एक अनाथ शिशु को वहाँ क्रन्दन करते देखा।

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