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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

अध्याय २-३

शिवजी की अष्टमूर्तियों तथा अर्धनारीनररूप का सविस्तार वर्णन

नन्दीश्वरजी कहते हैं- ऐश्वर्यशाली मुने! अब तुम महेश्वर के उन श्रेष्ठ अवतारों का वर्णन श्रवण करो, जो लोक में सबके समूर्ण कार्यों को पूर्ण करनेवाले अतएव सुखदाता हैं। तात! यह जगत् उन परमेश्वर शम्भु की आठ मूर्तियों का स्वरूप ही है। जैसे सूत में मणियाँ पिरोयी रहती हैं, उसी तरह यह विश्व उन अष्टमूर्तियों में व्याप्त होकर स्थित है। वे प्रसिद्ध आठ मूर्तियाँ ये हैं- शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव। शिवजी के इन शर्व आदि अष्टमूर्तियों द्वारा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, क्षेत्रज्ञ, सूर्य और चन्द्रमा अधिष्ठित हैं। शास्त्र का ऐसा निश्चय है कि कल्याणकर्ता महेश्वर का विश्वम्भरात्मक रूप ही चराचर विश्व को धारण किये हुए है। परमात्मा शिव का सलिलात्मक रूप जो समस्त जगत्‌को जीवन प्रदान करनेवाला है 'भव' नाम से कहा जाता है। जो जगत्‌ के बाहर-भीतर वर्तमान है और स्वयं ही विश्व का भरण-पोषण करता तथा स्पन्दित होता है उग्ररूपधारी प्रभु के उस रूपको सत्पुरूष 'उग्र' कहते हैं। महादेव का जो सबको अवकाश देनेवाला सर्वव्यापी आकाशात्मक रूप है, उसे ' भीम ' कहते हैं। वह भूतवृन्द का भेदक है। जो रूप समस्त आत्माओं का अधिष्ठान, सम्पूर्ण क्षेत्रों में निवास करनेवाला और जीवों के भव-पाश का छेदक है उसे 'पशुपति' का रूप समझना चाहिये। महेश्वर का सम्पूर्ण जगत्‌ को प्रकाशित करनेवाला जो सूर्य नामक रूप है, उसे 'ईशान' कहते हैं। वह द्युलोक में भ्रमण करता है। अमृतमयी रश्मियोंवाला जो चन्द्रमा सम्पूर्ण विश्व को आह्लादित करता है शिव का वह रूप 'महादेव' नाम से पुकारा जाता है। 'आत्मा' परमात्मा शिवका आठवाँ रूप है। यह मूर्ति अन्य मूर्तियोंकी व्यापिका है। इसलिये सारा विश्व शिवमय है। जिस प्रकार वृक्ष के मूल को सींचने से उसकी शाखाएँ पुष्पित हो जाती है उसी तरह शिव का पूजन करने से शिवस्वरूप विश्व परिपुष्ट होता है। जैसे इस लोक में पुत्र-पौत्र आदि को प्रसन्न देखकर पिता हर्षित होता है? उसी तरह विश्व को भलीभांति हर्षित देखकर शंकर को आनन्द मिलता है। इसलिये यदि कोई किसी भी देहधारी को कष्ट देता है तो निस्संदेह मानो उसने अष्टमूर्ति शिव का ही अनिष्ट किया है। सनत्कुमारजी! इस प्रकार भगवान् शिव अपनी अष्टमूर्तियों द्वारा समस्त विश्व को अधिष्ठित करके विराजमान हैं अत: तुम पूर्ण भक्तिभाव से उन परम कारण रुद्र का भजन करो।

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