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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

उन दोनों का यह करुणकन्दन सुनकर महावीर राजा ने ज्यों ही धनुष उठाया, त्यों ही वह व्याघ्र उनके निकट पहुँचा। उसने ब्राह्मणी को पकड़ लिया। वह बेचारी 'हा नाथ! हा नाथ! हा प्राणवल्लभ! हा शम्भो! हा जगद्गुरो!' इत्यादि कहकर रोने और विलाप करने लगी। व्याघ्र बड़ा भयानक था। उसने ज्यों ही ब्राह्माणी को अपना ग्रास बनाने की चेष्टा की, त्यों ही भद्रायु ने तीखे बाणों से उसके मर्म में आघात किया; परंतु उन बाणों से उस महाबली व्याघ्र को तनिक भी व्यथा नहीं हुई। वह ब्राह्मणी को बलपूर्वक घसीटता हुआ तत्काल दूर निकल गया। अपनी पत्नी को बाघ के पंजे में पड़ी देख ब्राह्मण को बड़ा दुःख हुआ और वह बारंबार रोने लगा। देरतक रोकर उसने राजा भद्रायु से कहा- 'राजन्! तुम्हारे वे बड़े-बड़े अस्त्र कहाँ हैं? दुःखियों की रक्षा करनेवाला तुम्हारा विशाल धनुष कहाँ है? सुना था तुममें बारह हजार बड़े-बड़े हाथियों का बल है। वह क्या हुआ? तुम्हारे शंख, खड्‌ग तथा मन्त्रास्त्र-विद्या से क्या लाभ हुआ? दूसरों को क्षीण होने से बचाना क्षत्रिय का परम धर्म है। धर्मज्ञ राजा अपना धन और प्राण देकर भी शरण में आये हुए दीन-दुखियों की रक्षा करते हैं। जो पीड़ितों की प्राणरक्षा नहीं कर सकते, ऐसे लोगों के लिये तो जीने की अपेक्षा मर जाना ही अच्छा है।'

इस प्रकार ब्राह्मण का विलाप और उसके मुख से अपने पराक्रम की निन्दा सुनकर राजा ने शोक से मन-ही-मन इस प्रकार विचार किया- 'अहो! आज भाग्य के उलट-फेर से मेरा पराक्रम नष्ट हो गया। मेरे धर्म का भी नाश हो गया। अत: अब मेरी सम्पदा, राज्य और आयु का भी निश्चय ही नाश हो जायगा।' यों विचारकर राजा भद्रायु ब्राह्मण के चरणों में गिर पड़े और उसे धीरज बँधाते हुए बोले- 'ब्रह्मन्! मेरा पराक्रम नष्ट हो गया है। महामते! मुझ क्षत्रियाधम पर कृपा करके शोक छोड़ दीजिये। मैं आपको मनोवांछित पदार्थ दूँगा। यह राज्य, यह रानी और मेरा यह शरीर सब कुछ आपके अधीन है। बोलिये, आप क्या चाहते हैं?'

ब्राह्मण बोले- राजन्! अंधे को दर्पण से क्या काम? जो भिक्षा माँगकर जीवन-निर्वाह करता हो, वह बहुत-से घर लेकर क्या करेगा। जो मूर्ख है, उसे पुस्तक से क्या काम तथा जिसके पास स्त्री नहीं है वह धन लेकर क्या करेगा? मेरी पत्नी चली गयी, मैंने कभी काम-सुख का उपभोग नहीं किया। अत: कामभोग के लिये आप अपनी इस बड़ी रानी को मुझे दे दीजिये। राजाने कहा- ब्रह्मन्! क्या यही तुम्हारा धर्म है? क्या तुम्हें गुरु ने यही उपदेश किया है? क्या तुम नहीं जानते कि परायी स्त्री का स्पर्श स्वर्ग एवं सुयश की हानि करनेवाला है? परस्त्री के उपभोग से जो पाप कमाया जाता है उसे सैकड़ों प्रायश्चित्तों द्वारा भी धोया नहीं जा सकता।

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