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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

तदनन्तर-ब्राहाण देवता ने यथासमय सब संस्कार करते हुए बालक को वेदाध्ययन कराया। तत्पश्चात् नवाँ वर्ष आनेपर माता-पिताकी सेवामें तत्पर रहनेवाले विश्वानर-नन्दन गृहपति को देखने के लिये वहाँ नारदजी पधारे। बालक ने माता-पिता सहित नारदजी को प्रणाम किया। फिर नारदजी ने बालक की हस्तरेखा, जिह्वा, तालु आदि देखकर कहा- 'मुनि विश्वानर! मैं तुम्हारे पुत्र के लक्षणों का वर्णन करता हूँ, तुम आदरपूर्वक उसे श्रवण करो। तुम्हारा यह पुत्र परम भाग्यवान् है इसके सभी अंगों के लक्षण शुभ हैं। किंतु इसके सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण शुभलक्षणों से समन्वित और चन्द्रमा के समान सम्पूर्ण निर्मल कलाओं से सुशोभित होनेपर भी विधाता ही इसकी रक्षा करें। इसलिये सब तरहके उपायों द्वारा इस शिशु की रक्षा करनी चाहिये; क्योंकि विधाता के विपरीत होनेपर गुण भी दोष हो जाता है। मुझे शंका है कि इसके बारहवें वर्ष में इसपर बिजली अथवा अग्नि द्वारा विघ्न आयेगा।' यों कहकर नारद जी जैसे आये थे, वैसे ही देवलोक को चले गये।

सनत्कुमारजी ! नारदजी का कथन सुनकर पत्नी सहित विश्वानर ने समझ लिया कि यह तो बड़ा भयंकर वज्रपात हुआ। फिर वे 'हाय! मैं मारा गया' यों कहकर छाती पीटने लगे और पुत्रशोक से व्याकुल होकर गहरी मूर्च्छा के वशीभूत हो गये। उधर शुचिष्मती भी दुःख से पीड़ित हो अत्यन्त ऊँचे स्वर से हाहाकार करती हुई ढाढ़ मारकर रो पड़ी, उसकी सारी इन्द्रियाँ अत्यन्त व्याकुल हो उठीं। तब पत्नी के आर्तनाद को सुनकर विश्वानर भी मूर्च्छा त्यागकर उठ बैठे और 'ऐं! यह क्या है? क्या हुआ?' यों उच्चस्वर से बोलते हुए कहने लगे- 'गृहपति! जो मेरा बाहर विचरनेवाला प्राण, मेरी सारी इन्द्रियों का स्वामी तथा मेरे अन्तरात्मा में निवास करनेवाला है कहाँ है?' तब माता-पिता को इस प्रकार अत्यन्त शोकग्रस्त देखकर शंकरके अंश से उत्पन्न हुआ वह बालक गृहपति मुसकराकर बोला।

गृहपति ने कहा- माताजी तथा पिताजी! बताइये इस समय आप लोगों के रोने का क्या कारण है? किसलिये आप लोग फूट-फूटकर रो रहे हैं? कहाँ से ऐसा भय आपलोगों को प्राप्त हुआ है? यदि मैं आपकी चरणरेणुओं से अपने शरीर की रक्षा कर लूँ तो मुझपर काल भी अपना प्रभाव नहीं डाल सकता; फिर इस तुच्छ, चंचल एवं अल्प बलवाली मृत्यु की तो बात ही क्या है। माता-पिताजी! अब आपलोग मेरी प्रतिज्ञा सुनिये- 'यदि मैं आपलोगों का पुत्र हूँ तो ऐसा प्रयत्न करूँगा जिससे मृत्यु भी भयभीत हो जायगी। मैं सत्पुरूषों को सब कुछ दे डालनेवाले सर्वज्ञ मृत्युंजय की भलीभांति आराधना करके महाकाल को भी जीत लूँगा-यह मैं आप लोगों से बिलकुल सत्य कह रहा हूँ।'

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