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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

उस समय दक्ष से ऐसा कहकर देवी ने अपनी माया से शिशुरूप धारण कर लिया और शैशवभाव प्रकट करती हुई वे वहाँ रोने लगीं। उस बालिका का रोदन सुनकर सभी स्त्रियाँ और दासियाँ बड़े वेग से प्रसन्नतापूर्वक वहाँ आ पहुँचीं। असिक्नी की पुत्री का अलौकिक रूप देखकर उन सभी स्त्रियों को बड़ा हर्ष हुआ। नगर के सब लोग उस समय जय-जयकार करने लगे। गीत और वाद्यों के साथ बड़ा भारी उत्सव होने लगा। पुत्री का मनोहर मुख देखकर सबको बड़ी ही प्रसन्नता हुई। दक्ष ने वैदिक और कुलोचित आचार का विधिपूर्वक अनुष्ठान किया। ब्राह्मणों को दान दिया और दूसरों को भी धन बाँटा। सब ओर यथोचित गान और नृत्य होने लगे। भांति-भांति के मंगल-कृत्यों के साथ बहुत-से बाजे बजने लगे। उस समय दक्ष ने समस्त सद्गुणों की सत्ता से प्रशंसित होनेवाली अपनी उस पुत्री का नाम प्रसन्नतापूर्वक 'उमा' रखा। तदनन्तर संसार में लोगों की ओर से उसके और भी नाम प्रचलित किये गये, जो सब-के-सब महान् मंगल-दायक तथा विशेषत: समस्त दुःखों का नाश करनेवाले हैं। वीरिणी और महात्मा दक्ष अपनी पुत्री का पालन करने लगे तथा वह शुक्लपक्ष की चन्द्रकला के समान दिनोदिन बढ़ने लगी। द्विजश्रेष्ठ! बाल्यावस्था में भी समस्त उत्तमोत्तम गुण उसमें उसी तरह प्रवेश करने लगे, जैसे शुक्लपक्ष के बाल चन्द्रमा में भी समस्त मनोहारिणी कलाएँ प्रविष्ट हो जाती हैं। दक्षकन्या सती सखियों के बीच बैठी-बैठी जब अपने भाव में निमग्न होती थी, तब बारंबार भगवान् शिव की मूर्ति को चित्रित करने लगती थी। मंगलमयी सती जब बाल्योचित सुन्दर गीत गाती, तब स्थाणु, हर एवं रुद्र नाम लेकर स्मरशत्रु शिव का स्मरण किया करती थी।

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