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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

उस अवसर पर वीरिणी के गर्भ में देवी का निवास हुआ जानकर श्रीविष्णु आदि सब देवताओं को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन सबने वहाँ आकर जगदम्बा का स्तवन किया और समस्त लोकों का उपकार करनेवाली देवी शिवा को बारंबार प्रणाम किया। वे सब देवता प्रसन्नचित्त हो दक्ष प्रजापति तथा वीरिणी की भूरि-भूरि प्रशंसा करके अपने-अपने स्थान को लौट गये। नारद! जब नौ महीने बीत गये, तब लौकिक गति का निर्वाह कराकर दसवें महीने के पूर्ण होनेपर चन्द्रमा आदि ग्रहों तथा ताराओं की अनुकूलता से युक्त सुखद मुहूर्त में देवी शिवा शीघ्र ही अपनी माता के सामने प्रकट हुईं। उनके अवतार लेते ही प्रजापति दक्ष बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें महान् तेज से देदीप्यमान देख उनके मन में यह विश्वास हो गया कि साक्षात् वे शिवादेवी ही मेरी पुत्री के रूप में प्रकट हुई हैं। उस समय आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी और मेघ जल बरसाने लगे। मुनीश्वर! सती के जन्म लेते ही सम्पूर्ण दिशाओं में तत्काल शान्ति छा गयी। देवता आकाश में खड़े हो मांगलिक बाजे बजाने लगे। अग्निशालाओं की बुझी हुई अग्नियाँ सहसा प्रज्वलित हो उठीं और सब कुछ परम मंगलमय हो गया। वीरिणी के गर्भ से साक्षात् जगदम्बा को प्रकट हुई देख दक्ष ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया और बड़े भक्ति-भाव से उनकी बड़ी स्तुति की। बुद्धिमान् दक्ष के स्तुति करने पर जगन्माता शिवा उस समय दक्ष से इस प्रकार बोलीं, जिससे माता वीरिणी न सुन सके।

देवी बोलीं- प्रजापते! तुमने पहले पुत्रीरूप में मुझे प्राप्त करने के लिये मेरी आराधना की थी, तुम्हारा वह मनोरथ आज सिद्ध हो गया। अब तुम उस तपस्या के फल को ग्रहण करो।

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