ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
मुनिवर मेधातिथि का एक यज्ञ चल रहा है जो बारह वर्षों तक चालू रहनेवाला है। उसमें अग्नि पूर्णतया प्रज्वलित है। तुम बिना विलम्ब किये उसी अग्नि में अपने शरीर का उत्सर्ग कर दो। इसी पर्वत की उपत्यका में चन्द्रभागा नदी के तट पर तापसाश्रम में मुनिवर मेधातिथि महायज्ञ का अनुष्ठान करते हैं। तुम स्वच्छन्दतापूर्वक वहाँ जाओ। मुनि तुम्हें वहाँ देख नहीं सकेंगे। मेरी कृपा से तुम मुनि की अग्नि से प्रकट हुई पुत्री होओगी। तुम्हारे मन में जिस किसी स्वामी को प्राप्त करने की इच्छा हो, उसे हृदय में धारणकर, उसी का चिन्तन करते हुए तुम अपने शरीर को उस यज्ञ की अग्नि में होम दो। संध्ये! जब तुम इस पर्वत पर चार युगों तक के लिये कठोर तपस्या कर रही थी, उन्हीं दिनों उस चतुर्युगी का सत्ययुग बीत जाने पर त्रेता के प्रथम भाग में प्रजापति दक्ष के बहुत-सी कन्याएँ हुईं। उन्होंने अपनी उन सुशीला कन्याओं का यथायोग्य वरों के साथ विवाह कर दिया। उन में से सत्ताईस कन्याओं का विवाह उन्होंने चन्द्रमा के साथ किया। चन्द्रमा अन्य सब पत्नियों को छोड़कर केवल रोहिणी से प्रेम करने लगे। इसके कारण क्रोध से भरे हुए दक्ष ने जब चन्द्रमा को शाप दे दिया, तब समस्त देवता तुम्हारे पास आये। परंतु संध्ये! तुम्हारा मन तो मुझमें लगा हुआ था, अत: तुमने ब्रह्माजी के साथ आये हुए उन देवताओं पर दृष्टिपात ही नहीं किया। तब ब्रह्माजी ने आकाश की ओर देखकर और चन्द्रमा पुन: अपने स्वरूप को प्राप्त करें, यह उद्देश्य मन में रखकर उन्हें शाप से छुड़ाने के लिये एक नदी की सृष्टि की, जो चन्द्र या चन्द्रभागा नदी के नाम से विख्यात हुई। चन्द्रभागा के प्रादुर्भाव काल में ही महर्षि मेधातिथि यहाँ उपस्थित हुए थे। तपस्या के द्वारा उनकी समानता करनेवाला न तो कोई हुआ है, न है और न होगा ही। उन महर्षि ने महान् विधि-विधान के साथ दीर्घकाल तक चलनेवाले ज्योतिष्टोम नामक यज्ञ का आरम्भ किया है। उसमें अग्निदेव पूर्णरूप से प्रज्वलित हो रहे हैं। उसी आग में तुम अपने शरीर को डाल दो और परम पवित्र हो जाओ। ऐसा करने से इस समय तुम्हारी वह प्रतिज्ञा पूर्ण हो जायगी।
इस प्रकार संध्या को उसके हित का उपदेश देकर देवेश्वर भगवान् शिव वहीं अन्तर्धान हो गये।
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