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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

महेश्वर ने कहा- भद्रे! मैं तुम्हारी इस उत्तम तपस्यासे बहुत प्रसन्न हूँ। शुद्ध बुद्धिवाली देवि! तुम्हारे इस स्तवन से भी मुझे बड़ा संतोष प्राप्त हुआ है। अत: इस समय अपनी इच्छा के अनुसार कोई वर माँगो। जिस वर से तुम्हें प्रयोजन हो तथा जो तुम्हारे मन में हो, उसे मैं यहाँ अवश्य पूर्ण करूँगा। तुम्हारा कल्याण हो। मैं तुम्हारे सत-नियम से बहुत प्रसन्न हूँ।

प्रसन्नचित्त महेश्वर का यह वचन सुनकर अत्यन्त हर्षसे भरी हुई संध्या उन्हें बारंबार प्रणाम करके बोली- महेश्वर! यदि आप मुझे प्रसन्नतापूर्वक वर देना चाहते हैं यदि मैं वर पाने के योग्य हूँ; यदि पाप से शुद्ध हो गयी हूँ तथा देव! यदि इस समय आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मेरा माँगा हुआ यह पहला वर सफल करें। देवेश्वर! इस आकाश में पृथ्वी आदि किसी भी स्थान में जो प्राणी हैं वे सब-के-सब जन्म लेते ही कामभाव से युक्त न हो जायँ। नाथ! मेरी सकाम दृष्टि कहीं न पड़े। मेरे जो पति हों, वे भी मेरे अत्यन्त सुहद् हों। पति के अतिरिक्त जो भी पुरुष मुझे सकामभाव से देखे, उसके पुरुषत्व का नाश हो जाय - वह तत्काल नपुंसक हो जाय।

निष्पाप संध्या का यह वचन सुनकर प्रसन्न हुए भक्तवत्सल भगवान् शंकरने कहा- देवि! संध्ये! सुनो। भद्रे! तुमने जो-जो वर माँगा है वह सब तुम्हारी तपस्या से संतुष्ट होकर मैंने दे दिया। प्राणियों के जीवन में मुख्यत: चार अवस्थाएँ होती हैं- पहली शैशवावस्था, दूसरी कौमारावस्था, तीसरी यौवनावस्था और चौथी वृद्धावस्था। तीसरी अवस्था प्राप्त होनेपर देहधारी जीव कामभाव से युक्त होंगे। कहीं-कहीं दूसरी अवस्था के अन्तिम भाग में ही प्राणी सकाम हो जायेंगे। तुम्हारी तपस्या के प्रभाव से मैंने जगत् में सकामभाव के उदय की यह मर्यादा स्थापित कर दी है जिससे देहधारी जीव जन्म लेते ही कामासक्त न हो जायँ। तुम भी इस लोक में वैसे दिव्य सतीभाव को प्राप्त करो, जैसा तीनों लोकों में दूसरी किसी स्त्री के लिये सम्भव नहीं होगा। पाणिग्रहण करनेवाले पति के सिवा जो कोई भी पुरुष सकाम होकर तुम्हारी ओर देखेगा, वह तत्काल नपुंसक होकर दुर्बलता को प्राप्त हो जायगा। तुम्हारे पति महान् तपस्वी तथा दिव्यरूप से सम्पन्न एक महाभाग महर्षि होंगे, जो तुम्हारे साथ सात कल्पों तक जीवित रहेंगे। तुमने मुझसे जो-जो वर माँगे थे, वे सब मैंने पूर्ण कर दिये। अब मैं तुमसे दूसरी बात कहूँगा, जो पूर्वजन्म से सम्बन्ध रखती है। तुमने पहले से ही यह प्रतिज्ञा कर रखी है कि मैं अग्नि में अपने शरीर को त्याग दूँगी। उस प्रतिज्ञा को सफल करने के लिये मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूँ। उसे निस्संदेह करो।

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