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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

संध्योवाच-

निराकारं ज्ञानगम्यं परं यन्नैव स्थूलं नापि सूक्ष्मं न चोच्चम्।
अन्तश्चिन्यं।ह योगिभिस्तस्य रूपं तस्मै तुभ्यं लोककर्त्रे नमोऽस्तु।।
शर्व शान्तं निर्मलं निर्विकारं ज्ञानगम्यं स्वप्रकाशेऽवि कारम्।
खाध्वप्रख्यं ध्वान्तमार्गात्परस्ताद् रूपं यस्य त्वां नमामि प्रसन्नम्।।
एकं शुद्धं दीप्यमानं विनाजां चिदानन्दं सहजं चाविकारि।
नित्यानन्दं सत्यभूतिप्रसन्नं यस्य श्रीदं रूपमस्मै नमस्ते।।
विद्याकारोद्भावनीयं प्रभिन्नं सत्त्वच्छन्दं ध्येयमात्मस्वरूपम्।
सारं पारं पावनानां पवित्रं तस्मै रूपं यस्य चैवं नमस्ते।।

यत्त्वाकारं शुद्धरूपं मनोज्ञं रत्नाकल्पं स्वच्छकर्पूरगौरम्।
इष्टाभीती  शूलमुण्डे  दधानं  हस्तैर्नमो योगयुक्ताय तुभ्यम्।।
गगनं भूर्दिशश्चैव सलिलं ज्योतिरेव च।
पुन: कालश्च रूपाणि यस्य तुभ्यं नमोऽस्तु ते।।

(शि० पु ० रु० सं० स० ख० ६। १२-१७)

संध्या बोली- जो निराकार और परम ज्ञानगम्य हैं जो न तो स्थूल हैं न सूक्ष्म हैं और न उच्च ही हैं तथा जिनके स्वरूप का योगीजन अपने हृदय के भीतर चिन्तन करते हैं उन्हीं लोकस्रष्टा आप भगवान् शिव को नमस्कार है। जिन्हें शर्व कहते हैं जो शान्तस्वरूप, निर्मल, निर्विकार और ज्ञानगम्य हैं? जो अपने ही प्रकाश में स्थित हो प्रकाशित होते हैं, जिनमें विकार का अत्यन्त अभाव है? जो आकाशमार्ग की भांति निर्गुण, निराकार बताये गये हैं तथा जिनका रूप अज्ञानान्धकार मार्ग से सर्वथा परे है उन नित्यप्रसन्न आप भगवान् शिवको मैं प्रणाम करती हूँ। जिनका रूप एक (अद्वितीय), शुद्ध, बिना माया के प्रकाशमान, सच्चिदानन्दमय, सहज निर्विकार, नित्यानन्दमय, सत्य, ऐश्वर्य से युक्त प्रसन्न तथा लक्ष्मी को देनेवाला है उन आप भगवान् शिव को नमस्कार है। जिनके स्वरूप की ज्ञानरूप से ही उद्भावना की जा सकती है जो इस जगत् से सर्वथा भिन्न है एवं सत्त्वप्रधान, ध्यान के योग्य, आत्मस्वरूप, सारभूत, सबको पार लगाने वाला तथा पवित्र वस्तुओं में भी परम पवित्र है उन आप महेश्वर को मेरा नमस्कार है। आपका जो स्वरूप शुद्ध, मनोहर रत्नमय आभूषणों से विभूषित तथा स्वच्छ कर्पूर के समान गौरवर्ण है जिसने अपने हाथों में वर अभय, शूल और मुण्ड धारण कर रखा है उस दिव्य, चिन्मय, सगुण, साकार विग्रह से सुशोभित आप योगयुक्त भगवान् शिव को नमस्कार है। आकाश, पृथ्वी, दिशाएँ, जल, तेज तथा काल - ये जिनके रूप हैं उन आप परमेश्वर को नमस्कार है।

 

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