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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

नारद! मैंने दयापूर्वक जब वसिष्ठ को इस प्रकार आज्ञा दी, तब वे 'जो आज्ञा' कहकर एक तेजस्वी ब्रह्मचारी के रूप में संध्या के पास गये। चन्द्रभाग पर्वत पर एक देवसरोवर है जो जलाशयोचित गुणो से परिपूर्ण हो मानसरोवर के समान शोभा पाता है। वसिष्ठ ने उस सरोवर को देखा और उसके तट पर बैठी हुई संध्या पर भी दृष्टिपात किया। कमलों से प्रकाशित होनेवाला वह सरोवर तट पर बैठी हुई संध्या से उपलक्षित हो उसी तरह सुशोभित हो रहा था, जैसे प्रदोष काल में उदित हुए चन्द्रमा और नक्षत्रों से युक्त आकाश शोभा पाता है। सुन्दर भाववाली संध्या को वहाँ बैठी देख मुनि ने कौतूहलपूर्वक उस बृहल्लोहित नामवाले सरोवर को अच्छी तरह देखा। उसी प्राकारभूत पर्वत के शिखर से दक्षिण समुद्र की ओर जाती हुई चन्द्रभागा नदी का भी उन्होंने दर्शन किया। जैसे गंगा हिमालय से निकलकर समुद्र की ओर जाती है उसी प्रकार चन्द्रभाग के पश्चिम शिखर का भेदन करके वह नदी समुद्र की ओर जा रही थी। उस चन्द्रभाग पर्वत पर बृहल्लोहित सरोवर के किनारे बैठी हुई संध्या को देखकर वसिष्ठजी ने आदरपूर्वक पूछा-

वसिष्ठजी बोले- भद्रे! तुम इस निर्जन पर्वत पर किसलिये आयी हो? किसकी पुत्री हो और तुमने यहाँ क्या करने का विचार किया है? मैं यह सब सुनना चाहता हूँ। यदि छिपाने योग्य बात न हो तो बताओ।

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