ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
भगवान् शिव की आज्ञा से सप्तर्षियों का पार्वती के आश्रम पर जा उनके शिव विषयक अनुराग की परीक्षा करना और भगवान् को सब वृत्तान्त बताकर स्वर्ग को जाना
ब्रह्माजी कहते हैं- देवताओं के अपने आश्रम में चले जाने पर पार्वती के तप की परीक्षा के लिये भगवान् शंकर समाधिस्थ हो गये। वे स्वयं अपने-आपमें, अपने ही परात्यर, स्वस्थ, मायारहित तथा उपद्रवशून्य स्वरूप का चिन्तन करने लगे। उस ध्येय वस्तु के रूप में साक्षात् भगवान् महेश्वर ही विराजमान हैं। उनकी गति का किसी को ज्ञान नहीं होता। वे भगवान् वृषभध्वज ही सबके स्रष्टा-परमेश्वर हैं।
तात! उन दिनों पार्वती देवी बड़ी भारी तपस्या कर रही थीं। उस तपस्या से रुद्रदेव भी बड़े विस्मय में पड़ गये। भक्ताधीन होने के कारण ही वे समाधि से विचलित हो गये और किसी कारण से नहीं। तदनन्तर सृष्टिकर्ता हर ने वसिष्ठ आदि सप्तर्षियों का स्मरण किया। उनके स्मरण करते ही वे सातों ऋषि शीघ्र ही वहाँ आ पहुँचे। उनके मुख पर प्रसन्नता छा रही थी तथा वे सब-के-सब अपने सौभाग्य की अधिक सराहना करते थे। उन्हें आया देख भगवान् शिव के नेत्र प्रसन्नता से प्रफुल्ल कमल के समान खिल उठे और वे हँसते हुए बोले- 'तात सप्तर्षियो! तुम सब लोग मेरे हितकारी तथा सम्पूर्ण वस्तुओं के ज्ञान में निपुण हो। अत: शीघ्र मेरी बात सुनो। गिरिराजकुमारी देवेश्वरी पार्वती इस समय सुस्थिरचित्त हो गौरी-शिखर नामक पर्वतपर तपस्या कर रही हैं। मुझे पतिरूप में प्राप्त करना ही उनकी तपस्या का उद्देश्य है। द्विजो! इस समय केवल सखियाँ उनकी सेवा में हैं। मेरे सिवा दूसरी समस्त कामनाओं-का परित्याग करके वे एक उत्तम निश्चय पर पहुँच चुकी हैं। मुनिवरो। तुम सब लोग मेरी आज्ञा से वहाँ जाओ और प्रेमपूर्ण हृदय से उनकी दृढ़ता की परीक्षा करो। वहाँ तुम्हें सर्वथा छलयुक्त बातें कहनी चाहिये। उत्तम व्रतधारी महर्षियो! मेरी आज्ञा से ऐसा करना है। इसलिये तुम्हें संशय नहीं करना चाहिये।'
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