लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 0

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

सुमधुर भाषण करनेवाली पर्वतराज-कुमारी शिवा माता मेना, भाई मैनाक, पिता हिमालय और मन्दराचल आदि से उपर्युक्त बात कहकर शीघ्र ही चुप हो गयीं। शिवा के ऐसा कहनेपर वे चतुर-चालाक पर्वत, गिरिराज सुमेरु आदि गिरिजा की बारंबार प्रशंसा करते हुए अत्यन्त विस्मित हो जैसे आये थे, वैसे ही लौट गये। उन सबके चले जाने पर सखियों से घिरी हुई पार्वती मन में यथार्थ निश्चय करके पहले से भी अधिक उग्र तपस्या करने लगीं। मुनिश्रेष्ठ! देवताओं, असुरों, मनुष्यों और चराचर प्राणियों सहित समस्त त्रिलोकी उस महती तपस्या से संतप्त हो उठी। उस समय समस्त देवता, असुर, यक्ष, किंनर, चारण, सिद्ध, साध्य, मुनि, विद्याधर, बड़े-बड़े नाग, प्रजापति, गुह्यक तथा अन्य लोग महान्-से-महान् कष्ट में पड़ गये। परंतु इसका कोई कारण उनकी समझ में नहीं आया। तब इन्द्र आदि सब देवता मिलकर गुरु बृहस्पति से सलाह ले बड़ी विह्वलता के साथ सुमेरु पर्वतपर मुझ विधाता की शरण में आये। उस समय उनके सारे अंग संतप्त हो रहे थे। वहाँ आ मुझे प्रणामकर उन सभी व्याकुल और कान्तिहीन देवताओं ने मेरी स्तुति करके एक साथ ही मुझसे पूछा-'प्रभो! जगत् के संतप्त होने का क्या कारण है?'

उनका यह प्रश्न सुनकर मन-ही-मन शिव का स्मरण करके विचारपूर्वक मैंने सब कुछ जान लिया। इस समय विश्व में जो दाह उत्पन्न हो गया है वह गिरिजा की तपस्या का फल है - यह जानकर मैं उन सबके साथ शीघ्र ही क्षीरसागर को गया। वहाँ जाने का उद्देश्य भगवान् विष्णु से सब कुछ बताना था। वहाँ पहुँचकर देखा, भगवान् श्रीहरि सुखद आसन पर विराजमान हैं। देवताओं के साथ मैंने हाथ जोड़कर प्रणामपूर्वक उनकी स्तुति की और कहा- 'महाविष्णो! तपस्या में लगी हुई पार्वती के परम उग्र तप से संतप्त हो हम सब लोग आपकी शरण में आये हैं। आप हमें बचाइये, बचाइये।' हम सब देवताओं की यह बात सुनकर शेषशय्या पर बैठे हुए भगवान् लक्ष्मीपति हमसे बोले।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book