लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 0

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

 अध्याय २३ 

पार्वती की तपस्याविषयक दृढ़ता, उनका पहले से भी उग्र तप, उससे त्रिलोकी का संतप्त होना तथा समस्त देवताओं के साथ ब्रह्मा और विष्णु का भगवान् शिव के स्थान पर जाना

ब्रह्माजी कहते हैं- मुनीश्वर! शिव की प्राप्ति के लिये इस प्रकार तपस्या करती हुई पार्वती के बहुत वर्ष बीत गये, तो भी भगवान् शंकर प्रकट नहीं हुए। तब हिमाचल, मेना, मेरु और मन्दराचल आदि ने आकर पार्वती को समझाया और शिव की प्राप्ति को अत्यन्त दुष्कर बताकर उनसे यह अनुरोध किया कि तुम तपस्या छोड़कर घर को लौट चलो। तब उन सबकी बात सुनकर पार्वती ने कहा-पिताजी! माताजी! तथा मेरे सभी बान्धव! मैंने पहले जो बात कही थी, उसे क्या आपलोगों ने भुला दिया है? अस्तु, इस समय भी मेरी जो प्रतिज्ञा है उसे आपलोग सुन लें। जिन्होंने रोष से कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया है वे महादेवजी यद्यपि विरक्त हैं तो भी मैं अपनी तपस्या से उन भक्तवत्सल भगवान् शंकर को अवश्य संतुष्ट करूँगी। आप सब लोग प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने घर को जायँ; महादेव जी संतुष्ट होंगे ही, इसमें अन्यथा विचार की आवश्यकता नहीं है। जिन्होंने कामदेव को जलाया है जिन्होंने इस पर्वत के वन को भी जलाकर भस्म कर दिया है उन भगवान् शंकर को मैं केवल तपस्या से यहीं बुलाऊँगी। महाभागगण! आप यह जान लें कि महान् तपोबल से ही भगवान् सदाशिव की सेवा सुलभ हो सकती है। यह मैं आपलोगों से सत्य, सत्य कहती हूँ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai