लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 0

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

 अध्याय २० - २१ 

ब्रह्माजी का शिव की क्रोधाग्नि को वडवानल की संज्ञा दे समुद्र में स्थापित करके संसार के भय को दूर करना, शिव के विरह से पार्वती का शोक तथा नारद जी के द्वारा उन्हें तपस्या के लिये उपदेशपूर्वक पंचाक्षर मन्त्र की प्राप्ति

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! जब भगवान् रुद्र के तीसरे नेत्र से प्रकट हुई अग्नि ने कामदेव को शीघ्र जलाकर भस्म कर दिया, तब वह बिना किसी प्रयोजन के ही प्रज्वलित हो सब ओर फैलने लगी। इससे चराचर प्राणियों सहित तीनों लोकों में महान् हाहाकार मच गया। तात! सम्पूर्ण देवता और ऋषि तुरंत मेरी शरण में आये। उन सबने अत्यन्त व्याकुल होकर मस्तक झुका दोनों हाथ जोड़ मुझे प्रणाम किया और मेरी स्तुति करके वह दुःख निवेदन किया। वह सुनकर मैं भगवान् शिव का स्मरण करके उसके हेतु का भलीभांति विचारकर तीनों लोकों की रक्षा के लिये विनीतभाव से वहाँ पहुँचा! वह अग्नि ज्वालामालाओं से अत्यन्त उद्दीप्त हो जगत् को जला देने के लिये उद्यत थी। परंतु भगवान् शिव की कृपा से प्राप्त हुए उत्तम तेज के द्वारा मैंने उसे तत्काल स्तम्भित कर दिया। मुने! त्रिलोकी को दग्ध करने की इच्छा रखनेवाली उस क्रोधमय अग्नि को मैंने एक ऐसे घोड़े के रूप में परिणत कर दिया, जिसके मुख से सौम्य ज्वाला प्रकट हो रही थी। भगवान् शिव की इच्छा से उस वाडव शरीर (घोड़े) वाली अग्नि को लेकर मैं लोकहित के लिये समुद्रतट पर गया। मुने! मुझे आया देख समुद्र एक दिव्य पुरुष का रूप धारण करके हाथ जोड़े हुए मेरे पास आया। मुझ सम्प्रर्ण लोकों के पितामह की भलीभाँति विधिवत् स्तुति-वन्दना करके सिन्धु ने मुझसे प्रसन्नतापूर्वक कहा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book