ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
यह सुनकर भगवान् वृषभध्वज शम्भु हँसने लगे और विशेषत: दुष्ट योगियों को लोकाचार का दर्शन कराते हुए वे हिमालय से बोले- 'शैलराज! यह कुमारी सुन्दर कटिप्रदेश से सुशोभित, तन्वंगी, चन्द्रमुखी और शुभ लक्षणों से सम्पन्न है। इसलिये इसे मेरे समीप तुम्हें नहीं लाना चाहिये। इसके लिये मैं तुम्हें बारंबार रोकता हूँ।
वेद के पारंगत विद्वानों ने नारी को मायारूपिणी कहा है। विशेषत: युवती स्त्री तो तपस्वीजनों के तप में विध्न डालनेवाली ही होती है। गिरिश्रेष्ठ! मैं तपस्वी, योगी और सदा माया से निर्लिप्त रहनेवाला हूँ। मुझे युवती स्त्री से क्या प्रयोजन है। तपस्वियों के श्रेष्ठ आश्रय हिमालय! इसलिये फिर तुम्हें ऐसी बात नहीं कहनी चाहिये, क्योंकि तुम वेदोक्त धर्म में प्रवीण, ज्ञानियों में श्रेष्ठ और विद्वान् हो। अचलराज! स्त्री के संग से मनमें शीघ्र ही विषयवासना उत्पन्न हो जाती है। उससे वैराग्य नष्ट होता है और वैराग्य न होने से पुरुष उत्तम तपस्या से भ्रष्ट हो जाता है। इसलिये शैल! तपस्वी को स्त्रियों का संग नहीं करना चाहिये; क्योंकि स्त्री महाविषय-वासना की जड़ एवं ज्ञान-वैराग्य का विनाश करनेवाली होती है।''
भवत्यचल तत्सङ्गाद् विषयोत्पत्तिराशु वै।
विनश्यति च वैराग्यं ततो भ्रश्यति सत्तप:।।
अतस्तपस्विना शैल न कार्या स्त्रीषु संगति:।
महाविषयमूलं सा ज्ञानवैराग्यनाशिनी ।।
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! इस तरह की बहुत-सी बातें कहकर महायोगिशिरोमणि भगवान् महेश्वर चुप हो गये। देवर्षे! शम्भु का यह निरामय, निःस्पृह और निष्ठुर वचन सुनकर काली के पिता हिमवान् चकित, कुछ-कुछ व्याकुल और चुप हो गये। तपस्वी शिव की कही हुई बात सुनकर और गिरिराज हिमवान् को चकित हुआ जानकर भवानी पार्वती उस समय भगवान् शिव को प्रणाम करके विशद वचन बोलीं।
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