ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
0 |
भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
पार्वती का नामकरण और विद्याध्ययन, नारद का हिमवान् के यहाँ जाना, पार्वती का हाथ देखकर भावी फल बताना, चिन्तित हुए हिमवान् को आश्वासन दे पार्वती का विवाह शिवजी के साथ करने को कहना और उनके संदेह का निवारण करना
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! मेना के सामने महातेजस्विनी कन्या होकर लौकिक गति का आश्रय ले वह रोने लगी। उसका मनोहर रुदन सुनकर घर की सब स्त्रियाँ हर्ष से खिल उठीं और बड़े वेग से प्रसन्नतापूर्वक वहाँ आ पहुँचीं। नील कमल-दल के समान श्याम कान्तिवाली उस परम तेजस्विनी मनोरम कन्या को देखकर गिरिराज हिमालय अतिशय आनन्द में निमग्न हो गये। तदनन्तर सुन्दर मुहूर्त में मुनियों के साथ हिमवान् ने अपनी पुत्री के काली आदि सुखदायक नाम रखे। देवी शिवा गिरिराज के भवन में दिनोंदिन बढ़ने लगीं - ठीक उसी तरह जैसे वर्षा के समय में गंगाजी की जलराशि और शरदऋतु के शुक्लपक्ष में चाँदनी बढ़ती है। सुशीलता आदि गुणों से संयुक्त तथा बन्धुजनों की प्यारी उस कन्या को कुदुम्ब के लोग अपने कुल के अनुरूप पार्वती नाम से पुकारने लगे। माता ने कालिका को 'उमा' (अरी! तपस्या मत कर) कहकर तप करने से रोका था। मुने! इसलिये वह सुन्दर मुखवाली गिरिराजनन्दिनी आगे चलकर लोक में उमा के नाम से विख्यात हो गयी। नारद! तदनन्तर जब विद्या के उपदेश का समय आया, तब शिवादेवी अपने चित्त को एकाग्र करके बड़ी प्रसन्नता के साथ श्रेष्ठ गुरु से विद्या पढ़ने लगीं। पूर्वजन्म की सारी विद्याएँ उन्हें उसी तरह प्राप्त हो गयीं, जैसे शरत्काल में हंसों की पाँत अपने-आप स्वर्गंगा के तटपर पहुँच जाती है और रात्रि में अपना प्रकाश स्वत: महौषधियों को प्राप्त हो जाता है। मुने! इस प्रकार मैंने शिवा की किसी एक लीला का ही वर्णन किया है। अब अन्य लीला का वर्णन करूँगा, सुनो।
|