ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
नारद! जब देवतालोग स्तुति करके चले गये, तब मेना उस समय प्रकट हुई नील कमल-दल के समान कान्तिवाली श्यामवर्णा देवी को देखकर अतिशय आनन्द का अनुभव करने लगीं। देवी के उस दिव्य रूप का दर्शन करके गिरिप्रिया मेना को ज्ञान प्राप्त हो गया। वे उन्हें परमेश्वरी समझकर अत्यन्त हर्ष से उल्लसित हो उठीं और संतोषपूर्वक बोलीं।
मेना ने कहा- जगदम्बे! महेश्वरि। आपने बड़ी कृपा की, जो मेरे सामने प्रकट हुईं। अम्बिके! आपकी बड़ी शोभा हो रही है। शिवे! आप सम्पूर्ण शक्तियों में आद्याशक्ति तथा तीनों लोकों की जननी हैं। देवि! आप भगवान् शिव को सदा ही प्रिय हैं तथा सम्पूर्ण देवताओं से प्रशंसित पराशक्ति हैं। महेश्वरि! आप कृपा करें और इसी रूप से मेरे ध्यान में स्थित हो जायँ। साथ ही मेरी पुत्री के अनुरूप प्रत्यक्ष दर्शनीय रूप धारण करें।
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! पर्वतपत्नी मेना की यह बात सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुई शिवादेवी ने उस गिरिप्रिया को इस प्रकार उत्तर दिया।
देवी बोलीं- मेना! तुमने पहले तत्परतापूर्वक मेरी बड़ी सेवा की थी। उस समय तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हो मैं वर देने के लिये तुम्हारे निकट आयी। 'वर माँगो' मेरी इस वाणी को सुनकर तुमने जो वर माँगा, वह इस प्रकार है-'महादेवि! आप मेरी पुत्री हो जायें और देवताओं का हित-साधन करें।' तब मैंने ' तथास्तु ' कहकर तुम्हें सादर यह वर दे दिया और मैं अपने धाम को चली गयी। गिरिकामिनि! उस वर के अनुसार समय पाकर आज मैं तुम्हारी पुत्री हुई हूँ। आज मैंने जो दिव्य रूप का दर्शन कराया है इसका उद्देश्य इतना ही है कि तुम्हें मेरे स्वरूप का स्मरण हो जाय; अन्यथा मनुष्य-रूप में प्रकट होनेपर मेरे विषय में तुम अनजान ही बनी रहतीं। अब तुम दोनों दम्पति पुत्रीभाव से अथवा दिव्यभाव से मेरा निरन्तर चिन्तन करते हुए मुझमें स्नेह रखो। इससे मेरी उत्तम गति प्राप्त होगी। मैं पृथ्वीपर अद्भुत लीला करके देवताओं का कार्य सिद्ध करूँगी। भगवान् शम्मु की पत्नी होऊँगी और सज्जनों का संकट से उद्धार करूँगी। ऐसा कहकर जगन्माता शिवा चुप हो गयीं और उसी क्षण माता के देखते-देखते प्रसन्नतापूर्वक नवजात पुत्री के रूप में परिवर्तित हो गयीं।
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