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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

अध्याय ३८ 

श्रीविष्णु की पराजय में दधीचि मुनि के शाप को कारण बताते हुए दधीचि और क्षुव के विवाद का इतिहास, मृत्युंजय-मन्त्र के अनुष्ठान से दधीचि की अवध्यता तथा श्रीहरि का क्षुव को दधीचि की पराजय के लिये यत्न करने का आश्वासन

सूतजी कहते हैं- महर्षियो! अमित बुद्धिमान् ब्रह्माजी की कही हुई यह कथा सुनकर द्विजश्रेष्ठ नारद विस्मय में पड़ गये। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक प्रश्न किया।

नारदजीने पूछा- पिताजी! भगवान् विष्णु शिवजी को छोड़कर अन्य देवताओं के साथ दक्ष के यज्ञ में क्यों चले गये, जिसके कारण वहाँ उनका तिरस्कार हुआ? क्या वे प्रलयकारी पराक्रम वाले - शंकर को नहीं जानते थे? फिर उन्होंने अज्ञानी पुरुष की भांति रुद्रगणों के साथ युद्ध क्यों किया? करुणानिधे! मेरे मन में यह बहुत बड़ा संदेह है। आप कृपा करके मेरे इस संशय को नष्ट कर दीजिये और प्रभो! मन में उत्साह पैदा करने वाले शिवचरित को कहिये।

ब्रह्माजी ने कहा- नारद! पूर्वकाल में राजा क्षुव की सहायता करनेवाले श्रीहरि को दधीचि मुनि ने शाप दे दिया था, जिससे उस समय वे इस बात को भूल गये और वे दूसरे देवताओं को साथ ले दक्ष के यज्ञ में चले गये। दधीचि ने क्यों शाप दिया, यह सुनो। प्राचीनकाल में क्षुव नाम से प्रसिद्ध एक महातेजस्वी राजा हो गये हैं। वे महाप्रभावशाली मुनीश्वर दधीचि के मित्र थे। दीर्घकाल की तपस्या के प्रसंग से क्षुव और दधीचि में विवाद आरम्भ हो गया, जो तीनों लोकों में महान् अनर्थकारी के रूप में विख्यात हुआ। उस विवाद में वेद के विद्वान् शिवभक्त दधीचि कहते थे कि शूद्र, वैश्य और क्षत्रिय - इन तीनों वर्णों से ब्राह्मण ही श्रेष्ठ है इसमें संशय नहीं है। महामुनि दधीचि की वह बात सुनकर धन-वैभव के मद से मोहित हुए राजा क्षुव ने उसका इस प्रकार प्रतिवाद किया।

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