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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

वीरभद्र ने कहा- महाप्रभो! मैंने आपके भाव की परीक्षा के लिये कड़ी बातें कही थीं। इस समय यथार्थ बात कहता हूँ, सावधान होकर सुनो। हरे! जैसे शिव हैं वैसे आप हैं। जैसे आप हैं वैसे शिव हैं। ऐसा वेद कहते हैं और वेदों का यह कथन शिव की आज्ञा के अनुसार ही है।

यथा शिवस्तथा त्वं हि यथा त्वं च तथा शिवः।
इति वेदा वर्णयन्ति शिवशासनतो हरे।।

(शि. पु. रु. सं. स. खं. 36 . 36)

रमानाथ! भगवान् शिव की आज्ञा से हम सब लोग उनके सेवक ही हैं; तथापि मैंने जो बात कही है वह इस वाद-विवाद के अवसर के अनुरूप ही है। आप मेरी हर बात को आपके प्रति आदर के भाव से ही कही गयी समझिये।

ब्रह्माजी कहते हैं- वीरभद्र का यह वचन सुनकर भगवान् श्रीहरि हँस पड़े और उसके लिये हितकर वचन बोले।

श्रीविष्णु ने कहा- महावीर! तुम मेरे साथ निशंक होकर युद्ध करो। तुम्हारे अस्त्रों से शरीर के भर जाने पर ही मैं अपने आश्रम को जाऊँगा।

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