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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! भगवान् विष्णु का यह वचन सुनकर दक्ष चिन्ता में डूब गये। उनके चेहरे का रंग उड़ गया और वे चुपचाप पृथ्वी पर खड़े रह गये। इसी समय भगवान् रुद्र के भेजे हुए गणनायक वीरभद्र अपनी सेना के साथ यज्ञस्थल में जा पहुँचे। वे सब-के-सब बड़े शूरवीर, निर्भय तथा रुद्र के समान ही पराक्रमी थे। भगवान् शंकर की आज्ञा से आये हुए उन गणों की गणना असम्भव थी। वे वीरशिरोमणि रुद्र सैनिक जोर-जोर से सिंहनाद करने लगे। उनके उस महानाद से तीनों लोक गूँज उठे। आकाश धूल से ढक गया और दिशाएँ अन्धकार से आवृत हो गयीं। सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी अत्यन्त भय से व्याकुल हो पर्वत, बन और काननों सहित काँपने लगी तथा सम्प्रर्ण समुद्रों में ज्वार आ गया। इस प्रकार समस्त लोकों का विनाश करने में समर्थ उस विशाल सेना को देखकर समस्त देवता आदि चकित हो गये। सेना के उद्योग को देख दक्ष के मुँहसे खून निकल आया। वे अपनी स्त्री को साथ ले भगवान् विष्णु के चरणों में दण्ड की भांति गिर पड़े और इस प्रकार बोले।

दक्ष ने कहा- विष्णो! महाप्रभो! आपके बल से ही मैंने इस महान् यज्ञ का आरम्भ किया है। सत्कर्म की सिद्धि के लिये आप ही प्रमाण माने गये हैं। विष्णो! आप कर्मों के साक्षी तथा यज्ञों के प्रतिपालक हैं। महाप्रभो! आप वेदोक्त धर्म तथा ब्रह्माजी के रक्षक हैं। अत: प्रभो! आपको मेरे इस यज्ञ की रक्षा करनी चाहिये; क्योंकि आप सबके प्रभु हैं।

ब्रह्माजी कहते हैं- दक्ष की अत्यन्त दीनतापूर्ण बात सुनकर भगवान् विष्णु उस समय शिवतत्त्व से विमुख हुए दक्ष को समझानेके लिये इस प्रकार बोले।

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