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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

अध्याय ३५ 

दक्ष के यज्ञ की रक्षा के लिये भगवान् विष्णु से प्रार्थना, भगवान् का शिवद्रोहजनित संकट को टालने में अपनी असमर्थता बताते हुए दक्षको समझाना तथा सेनासहित वीरभद्र का आगमन

दक्ष बोले- देवदेव! हरे! विष्णो! दीनबन्धो! कृपानिधे! आपको मेरी और मेरे यज्ञ की रक्षा करनी चाहिये। प्रभो। आप ही यज्ञ के रक्षक हैं यज्ञ ही आपका कर्म है और आप यज्ञस्वरूप हैं। आपको ऐसी कृपा करनी चाहिये, जिससे यज्ञका विनाश न हो।

ब्रह्माजी कहते हैं- मुनीश्वर! इस तरह अनेक प्रकार से सादर प्रार्थना करके दक्ष भगवान् श्रीहरि के चरणों में गिर पड़े। उनका चित्त भय से व्याकुल हो रहा था। तब जिनके मन में घबराहट आ गयी थी, उन प्रजापति दक्ष को उठाकर और उनकी पूर्वोक्त बात सुनकर भगवान् विष्णु ने देवाधिदेव शिव का स्मरण किया। अपने प्रभु एवं महान् ऐश्वर्य से युक्त परमेश्वर शिव का स्मरण करके शिवतत्त्व के ज्ञाता श्रीहरि दक्ष को समझाते हुए बोले।

श्रीहरिने कहा- दक्ष! मैं तुमसे तत्त्व की बात बता रहा हूँ। तुम मेरी बात ध्यान देकर सुनो। मेरा यह वचन तुम्हारे लिये सर्वथा हितकर तथा महामन्त्र के समान सुखदायक होगा। दक्ष! तुम्हें तत्त्व का ज्ञान नहीं है। इसलिये तुमने सबके अधिपति परमात्मा शंकर की अवहेलना की है। ईश्वर की अवहेलना से सारा कार्य सर्वथा निष्फल हो जाता है। केवल इतना ही नहीं, पग-पग पर विपत्ति भी आती है। जहाँ अपूज्य पुरुषों की पूजा होती है और पूजनीय पुरुष की पूजा नहीं की जाती, वहाँ दरिद्रता, मृत्यु तथा भय - ये तीन संकट अवश्य प्राप्त होंगे।

ईश्वरावज्ञया सर्वं कार्यं भवति सर्वथा।
विफल केवलं नैव विपत्तिश्च पदे पदे।।
अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूजनीयो न पूज्यते।
त्रीणि तत्र भविष्यन्ति दारिद्य मरणं भयम्।।

(शि० पु० रु० सं० स० ख० ३५। ८-९ )

इसलिये सम्पूर्ण प्रयत्न से तुम्हें भगवान् वृषभध्वज का सम्मान करना चाहिये। महेश्वर का अपमान करने से ही तुम्हारे ऊपर महान् भय उपस्थित हुआ है। हम सब लोग प्रभु होते हुए भी आज तुम्हारी दुर्नीति के कारण जो संकट आया है उसे टालने में समर्थ नहीं हैं। यह मैं तुमसे सच्ची बात कहता हूँ।

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