ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
महामुनियो में श्रेष्ठ सभी महर्षि स्वयं वेदों के धारण करनेवाले हुए थे। अग्नि ने भी उस यज्ञमहोत्सव में शीघ्र ही हविष्य ग्रहण करने के लिये अपने सहस्रों रूप प्रकट किये थे। वहाँ अट्ठासी हजार ऋत्विज् एक साथ हवन करते थे। चौंसठ हजार देवर्षि उद्गाता थे। अध्वर्यु एवं होता भी उतने ही थे। नारद आदि देवर्षि और सप्तर्षि पृथक्-पृथक् गाथा-गान कर रहे थे। दक्ष ने अपने उस महायज्ञ में गन्धर्वों, विद्याधरों, सिद्धों, बारह आदित्यों, उनके गणों, यज्ञों तथा नागलोक में विचरनेवाले समस्त नागों का भी बहुत बड़ी संख्या में वरण किया था। ब्रह्मर्षि, राजर्षि और देवर्षियों के समुदाय तथा बहुसंख्यक नरेश भी उसमें आमन्त्रित थे, जो अपने मित्रों, मन्त्रियों तथा सेनाओं के साथ आये थे। यजमान दक्ष ने उस यज्ञ में वसु आदि समस्त गणदेवताओं का भी वरण किया था। कौतुक और मंगलाचार करके जब दक्ष ने यज्ञ की दीक्षा ली तथा जब उनके लिये बारंबार स्वस्तिवाचन किया जाने लगा, तब वे अपनी पत्नी के साथ बड़ी शोभा पाने लगे।
इतना सब करनेपर भी दुरात्मा दक्ष ने उस यज्ञ में भगवान् शम्भु को नहीं आमन्त्रित किया। उनकी दृष्टि में कपालधारी होने के कारण वे निश्चय ही यज्ञ में भाग पानेयोग्य नहीं थे। सती प्रजापति दक्ष की प्रिय पुत्री थीं तो भी कपाली की पत्नी होनेके कारण दोषदर्शी दक्ष ने उन्हें अपने यज्ञ में नहीं बुलाया। इस प्रकार जब दक्ष का वह यज्ञ-महोत्सव आरम्भ हुआ और यज्ञ-मण्डप में आये हुए सब ऋत्विज् अपने-अपने कार्य में संलग्न हो गये, उस समय वहाँ भगवान् शंकर को उपस्थित न देख शिवभक्त दधीचि का चित्त अत्यन्त उद्विग्न हो उठा और वे यों बोले।
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