ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
दक्ष के द्वारा महान् यज्ञ का आयोजन, उसमें ब्रह्मा, विष्णु, देवताओं और ऋषियों का आगमन, दक्ष द्वारा सबका सत्कार, यज्ञ का आरम्भ, दधीचि द्वारा भगवान् शिव को बुलाने का अनुरोध और दक्ष के विरोध करने पर शिव-भक्तों का वहाँ से निकल जाना
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! एक समय दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आरम्भ किया। उस यज्ञ की दीक्षा लेकर उन्होंने उस समय समस्त देवर्षियों, महर्षियों तथा देवताओं को बुलाया। वे सभी उस यज्ञ में पधारे। अगस्त्य, कश्यप, अत्रि, वामदेव, भृगु, दधीचि, भगवान् व्यास, भारद्वाज, गौतम, पैल, पराशर, गर्ग, भार्गव, ककुष, सित, सुमन्तु, त्रिक, कंक और वैशम्पायन - ये तथा दूसरे बहुसंख्यक मुनि अपने स्त्री-पुत्रों को साथ ले मेरे पुत्र दक्ष के यज्ञ में हर्षपूर्वक सम्मिलित हुए थे। इनके सिवा समस्त देवगण, महान् अभ्युदयशाली लोकपालगण और सभी उपदेवता अपनी उपकारक सैन्यशक्ति के साथ वहाँ पधारे थे। दक्ष ने प्रार्थना करके सदल-बल मुझ विश्वस्रष्टा ब्रह्मा को भी सत्यलोक से बुलवाया था। इसी तरह भांति-भांति से सादर प्रार्थना करके वैकुण्ठलोक से भगवान् विष्णु भी उस यज्ञ में बुलाये गये थे। शिवद्रोही दुरात्मा दक्ष ने उन सबका बड़ा सत्कार किया। विश्वकर्मा ने अत्यन्त दीप्तिमान्, विशाल और बहुमूल्य दिव्य भवन बनाये थे। दक्ष ने वे ही भवन समागत अतिथियों को ठहरने के लिये दिये। सभी लोग सम्मानित हो उन सम्पूर्ण भवनों में यथायोग्य स्थान पाकर ठहरे हुए थे। दक्ष का वह महायज्ञ उस समय कनखल नामक तीर्थ में हो रहा था। उसमें दक्ष ने भृगु आदि तपोधनों को ऋत्विज बनाया। सम्पूर्ण मरुदगणों के साथ स्वयं भगवान् विष्णु उसके अधिष्ठाता थे। मैं वेदत्रयी की विधि को दिखाने या बतानेवाला ब्रह्मा बना था। इसी तरह सम्पूर्ण दिक्पाल अपने आयुधों और परिवारों के साथ द्वारपाल एवं रक्षक बने थे और सदा कौतूहल पैदा करते थे। स्वयं यज्ञ सुन्दर रूप धारण करके दक्ष के उस यज्ञमण्डल में उपस्थित था।
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