ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
श्रीरामचन्द्रजी की यह बात सुनकर सती उस समय आश्चर्यचकित हो गयीं। वे शिवजी की कही हुई बात का स्मरण करके और उसे यथार्थ समझकर बहुत लज्जित हुईं। श्रीराम को साक्षात् विष्णु जान अपने रूप को प्रकट करके मन-ही-मन भगवान् शिव के चरणारविन्दों का चिन्तन कर प्रसन्नचित्त हुई सती उनसे इस तरह बोलीं- 'रघुनन्दन! स्वतन्त्र परमेश्वर भगवान् शिव मेरे तथा अपने पार्षदों के साथ पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए इस वन में आ गये थे। यहाँ उन्होंने सीता की खोज में लगे हुए लक्ष्मण सहित तुमको देखा। उस समय सीता के लिये तुम्हारे मन में बड़ा क्लेश था और तुम विरहशोक से पीड़ित दिखायी देते थे। उस अवस्था में तुम्हें प्रणामकरके वे चले गये और उस वटवृक्ष के नीचे अभी खड़े ही हैं। भगवान् शिव बड़े आनन्द के साथ तुम्हारे वैष्णवरूप की उत्कृष्ट महिमा का गान कर रहे थे। यद्यपि उन्होंने तुम्हें चतुर्भुज विष्णु के रूप में नहीं देखा तो भी तुम्हारा दर्शन करते ही वे आनन्दविभोर हो गये। इस निर्मल रूप की ओर देखते हुए उन्हें बड़ा आनन्द प्राप्त हुआ। इस विषय में मेरे पूछने पर भगवान् शम्भु ने जो बात कही, उसे सुनकर मेरे मन में भ्रम उत्पन्न हो गया। अत: राघवेन्द्र! मैंने उनकी आज्ञा लेकर तुम्हारी परीक्षा की है। श्रीराम! अब मुझे ज्ञात हो गया कि तुम साक्षात् विष्णु हो। तुम्हारी सारी प्रभुता मैंने अपनी आँखों देख ली। अब मेरा संशय दूर हो गया तो भी महामते! तुम मेरी बात सुनो। मेरे सामने यह सच-सच बताओ कि तुम भगवान् शिव के भी वन्दनीय कैसे हो गये? मेरे मन में यही एक संदेह है। इसे निकाल दो और शीघ्र ही मुझे पूर्ण शान्ति प्रदान करो।' सती का यह वचन सुनकर श्रीरामके नेत्र प्रफुल्ल कमल के समान खिल उठे। उन्होंने मन-ही-मन अपने प्रभु भगवान् शिव का स्मरण किया। इससे उनके हृदय में प्रेम की बाढ़ आ गयी। मुने! आज्ञा न होने के कारण वे सती के साथ भगवान् शिव के निकट नहीं गये तथा मन-ही-मन उनकी महिमा का वर्णन करके श्रीरधुनाथजी ने सती से कहना प्रारम्भ किया।
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