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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

ऐसा कहकर सृष्टिकर्ता भगवान् शम्भु चुप हो गये। भगवान् शिव की ऐसी बात सुनकर भी सती के मनको इसपर विश्वास नहीं हुआ। क्यों न हो, भगवान् शिव की माया बड़ी प्रबल है वह सम्पूर्ण त्रिलोकी को मोह में डाल देनेवाली है। सती के मन में मेरी बातपर विश्वास नहीं है यह जानकर लीलाविशारद प्रभु सनातन शम्भु यों बोले। 

शिव ने कहा- देवि! मेरी बात सुनो। यदि तुम्हारे मन में मेरे कथनपर विश्वास नहीं है तो तुम वहाँ जाकर अपनी ही बुद्धि से श्रीराम की परीक्षा कर लो। प्यारी सती! जिस प्रकार तुम्हारा मोह या भ्रम नष्ट हो जाय, वह करो। तुम वहीं जाकर परीक्षा करो। तबतक मैं इस बरगद के नीचे खड़ा हूँ।

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! भगवान् शिव की आज्ञा से ईश्वरी सती वहाँ गयीं और मन-ही-मन यह सोचने लगीं कि 'मैं वनचारी राम की कैसे परीक्षा करूँ अच्छा, मैं सीता का रूप धारण करके राम के पास चलूँ। यदि राम साक्षात् विष्णु हैं तब तो सब कुछ जान लेंगे; अन्यथा वे मुझे नहीं पहचानेंगे।' ऐसा विचार सती सीता बनकर श्रीराम के समीप उनकी परीक्षा लेने के लिये गयीं। वास्तव में वे मोह में पड़ गयी थीं। सती को सीता के रूप में सामने आयी देख शिव-शिव का जप करते हुए रघुकुलनन्दन श्रीराम सब कुछ जान गये और हँसते हुए उन्हें नमस्कार करके बोले।

श्रीरामने पूछा- सतीजी! आपको नमस्कार है। आप प्रेमपूर्वक बतायें, भगवान् शम्भु कहाँ गये हैं? आप पति के बिना अकेली ही इस वनमें क्योंकर आयीं? देवि! आपने अपना रूप त्यागकर किसलिये यह नूतन रूप धारण किया है? मुझपर कृपा करके इसका कारण बताइये।

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