ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
नारदजी बोले- महाभाग विष्णुशिष्य! विधात! आप मुझे शिवा और शिव के भाव तथा आचार से सम्बन्ध रखनेवाले उनके चरित्र को विस्तारपूर्वक सुनाइये। तात! भगवान् शंकर ने अपने प्राणों से भी प्यारी धर्मपत्नी सती का किसलिये त्याग किया? यह घटना तो मुझे बड़ी विचित्र जान पड़ती है। अत: इसे आप अवश्य कहें। अज! आपके पुत्र दक्ष के यज्ञ में भगवान् शिव का अनादर कैसे हुआ? और वहाँ पिता के यज्ञ में जाकर सती ने अपने शरीरका त्याग किस प्रकार किया? उसके बाद वहाँ क्या द्या? भगवान् महेश्वरने क्या किया? ये सब बातें मुझसे कहिये। इन्हें सुननेके लिये मेरे मनमें बड़ी श्रद्धा है।
ब्रह्माजी ने कहा- मेरे पुत्रोंमें श्रेष्ठ! महाप्राज्ञ! तात नारद! तुम महर्षियों के साथ बड़े प्रेम से भगवान् चन्द्रमौलि का यह चरित्र सुनो। श्रीविष्णु आदि देवताओं से सेवित परब्रह्म महेश्वर को नमस्कार करके मैं उनके महान् अद्भुत चरित्र का वर्णन आरम्भ करता हूँ। मुने! यह सब भगवान् शिव की लीला ही है। वे प्रभु अनेक प्रकार की लीला करनेवाले, स्वतन्त्र और निर्विकार हैं। देवी सती भी वैसी ही हैं। अन्यथा वैसा कर्म करने में कौन समर्थ हो सकता है। परमेश्वर शिव ही परब्रह्म परमात्मा हैं।
एक समय की बात है तीनों लोकों में विचरने वाले लीलाविशारद भगवान् रुद्र सती के साथ बैल पर आरूढ़ हो इस भूतलपर भ्रमण कर रहे थे। घूमते-घूमते वे दण्डकारण्य में आये। वहाँ उन्होंने लक्ष्मण सहित भगवान् श्रीराम को देखा, जो रावणद्वारा छलपूर्वक हरी गयी अपनी प्यारी पत्नी सीता की खोज कर रहे थे। वे 'हा सीते!' ऐसा उच्चस्वर से पुकारते, जहाँ-तहाँ देखते और बारंबार रोते थे। उनके मन में विरह का आवेश छा गया था। सूर्यवंश में उत्पन्न, वीरभूपाल, दशरथनन्दन, भरताग्रज श्रीराम आनन्दरहित हो लक्ष्मण के साथ वन में भ्रमण कर रहे थे और उनकी कान्ति फीकी पड़ गयी थी। उस समय उदारचेता पूर्णकाम भगवान् शंकर ने बड़ी प्रसन्नता के साथ उन्हें प्रणाम किया और जय-जयकार करके वे दूसरी ओर चल दिये। भक्तवत्सल शंकर ने उस वन में श्रीराम के सामने अपने को प्रकट नहीं किया। भगवान् शिव की मोह में डालनेवाली ऐसी लीला देख सती को बड़ा विस्मय हुआ। वे उनकी माया से मोहित हो उनसे इस प्रकार बोलीं।
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