ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
दण्डकारण्य में शिव को श्रीराम के प्रति मस्तक झुकाते देख सती का मोह तथा शिव की आज्ञा से उनके द्वारा श्रीराम की परीक्षा
नारदजी बोले-ब्रह्मन्! विधे! प्रजानाथ! महाप्राज्ञ! दयानिधे! आपने भगवान् शंकर तथा देवी सती के मंगलकारी सुयश का श्रवण कराया है। अब इस समय पुन: प्रेमपूर्वक उनके उत्तम यश का वर्णन कीजिये। उन शिव-दम्पति ने वहाँ रहकर कौन-सा चरित्र किया था?
ब्रह्माजीने कहा-मुने! तुम मुझसे सती और शिव के चरित्र का प्रेम से श्रवण करो। वे दोनों दम्पति वहाँ लौकिकी गतिका आश्रय ले नित्य-निरन्तर क्रीडा किया करते थे। तदनन्तर महादेवी सती को अपने पति शंकर का वियोग प्राप्त हुआ, ऐसा कुछ श्रेष्ठ बुद्धिवाले विद्वानों का कथन है। परंतु मुने! वास्तवमें उन दोनों का परस्पर वियोग कैसे हो सकता है? क्योंकि वे दोनों वाणी और अर्थ के समान एक-दूसरे से सदा मिले-जुले हैं शक्ति और शक्तिमान् हैं तथा चित्स्वरूप हैं। फिर भी उनमें लीला-विषयक रुचि होने के कारण वह सब कुछ संघटित हो सकता है। सती और शिव यद्यपि ईश्वर हैं तो भी लौकिक रीति का अनुसरण करके वे जो-जो लीलाएँ करते हैं, वे सब सम्भव हैं। दक्षकन्या सती ने जब देखा कि मेरे पति ने मुझे त्याग दिया है तब वे अपने पिता दक्ष के यज्ञ में गयीं और वहाँ भगवान् शंकर का अनादर देख उन्होंने अपने शरीर को त्याग दिया। वे ही सती पुन: हिमालय के घर पार्वती के नामसे प्रकट हुईं और बड़ी भारी तपस्या करके उन्होंने विवाह के द्वारा पुन: भगवान् शिव को प्राप्त कर लिया।
सूतजी कहते हैं- महर्षियो! ब्रह्माजी की यह बात सुनकर नारदजी ने विधाता से शिवा और शिव के महान् यश के विषय में इस प्रकार पूछा।
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