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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

उनकी यह बात सुनकर मैंने और श्रीहरि ने मन्द मुसकान के साथ मन-ही-मन प्रसन्नता का अनुभव किया; फिर मैं विनम्र होकर बोला- 'नाथ! महेश्वर! प्रभो! आपने जैसी नारी की खोज आरम्भ की है वैसी ही स्त्री के विषय में मैं आपको प्रसन्नतापूर्वक कह रहा हूँ। साक्षात् सदाशिव की धर्मपत्नी जो उमा हैं वे ही जगत् का कार्य सिद्ध करने के लिये भिन्न-भिन्न रूप में प्रकट हुई हैं। प्रभो! सरस्वती और लक्ष्मी - ये दो रूप धारण करके वे पहले ही यहाँ आ चुकी हैं। इनमें लक्ष्मी तो श्रीविष्णु की प्राणवल्लभा हो गयीं और सरस्वती मेरी। अब हमारे लिये वे तीसरा रूप धारण करके प्रकट हुई हैं। प्रभो! लोकहित का कार्य करने की इच्छावाली देवी शिवा दक्षपुत्री के रूप में अवतीर्ण हुई हैं। उनका नाम सती है। सती ही ऐसी भार्या हो सकती हैं जो सदा आपके लिये हितकारिणी हो। देवेश! महातेजस्विनी सती आपके लिये, आपको पतिरूप में प्राप्त करने के लिये दृढ़तापूर्वक कठोर व्रत का पालन करती हुई तपस्या कर रही हैं। महेश्वर! आप उन्हें वर देने के लिये जाइये, कृपा कीजिये और बड़ी प्रसन्नता के साथ उन्हें उनकी तपस्या के अनुरूप वर देकर उनके साथ विवाह कीजिये। शंकर! भगवान् विष्णु की, मेरी तथा इन सम्पूर्ण देवताओं की यही इच्छा है। आप अपनी शुभ दृष्टि से हमारी इस इच्छा को पूर्ण कीजिये, जिससे हम आदरपूर्वक इस उत्सव को देख सकें। ऐसा होने से तीनों लोकों में सुख देनेवाला परम मंगल होगा और सबकी सारी चिन्ता मिट जायगी, इस में संशय नहीं है।'

तदनन्तर मेरी बात समाप्त होने पर लीला-विग्रह धारण करनेवाले भक्तवत्सल महेश्वर से मधुसूदन अच्युत ने इसी का समर्थन किया।

तब भक्तवत्सल भगवान् शिव ने हँसकर कहा, 'बहुत अच्छा, ऐसा ही होगा।' उनके ऐसा कहने पर हम दोनों उनसे आज्ञा ले अपनी पत्नी तथा देवताओं और मुनियों के साथ अत्यन्त प्रसन्न हो अपने अभीष्ट स्थान को चले आये।

* * *

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