ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 6 देवकांता संतति भाग 6वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
एक सायत को दारोगा सकपका गया, बोला-- ''इस वक्त क्योंकि आपकी मदद के बिना मैं बहुत खतरे में हूं। अगर इन दोनों को छोड़ दिया तो मेरी खैर नहीं है। इन्हें तो खत्म करना ही है। आप कहते हैं कि आपको अपने प्रति मेरे सच्चे और ईमानदार होने का यकीन उसी हालत में होगा - तो मैं आपके सामने इन दोनों की हत्या करने को तैयार हूं। कदाचित् इस वक्त खुद आप मेरी हालत का सही अंदाजा नहीं लगा सकते। एक सायत के लिए आप खुद मेरी जगह आकर देखें तो आपको मेरी मुसीबतों का पता लगेगा। अपनी जान और इज्जत हथेली पर रखकर.. मैंने आपके साथ मिलकर उमादत्त का तख्ता पलटने की योजना बनाई। ये मेरा दिल जानता है कि आपके लिए मेरे दिल में किसी तरह का कोई खोट नहीं है। मैंने सच्चे दिल से बंसीलाल के जरिए खत भिजवाए। दुष्ट बंसीलाल ही धोखा कर जाए तो इसमें मेरा क्या कुसूर? कंचन को पता लग ही गया है कि मैं उसके पति के खिलाफ हूं!
''और -- इस वक्त अगर मैं कंचन और कमला को जिंदा छोड़कर अपने कदम वापस ले जाना चाहूं तो वह भी मुमकिन नहीं है। उधर बंसीलाल हमारे सारे गुनाह जानता है, इधर आप भी मुझ पर शक करके अपना साया मुझ पर से उठा रहे हैं। ऐसे मुसीबत के वक्त में अगर मेरे ऊपर से आपका साया भी उठ गया तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा। आप को अगर अपने प्रति मेरे सच्चे, ईमानदार और नेकनीयत होने का यकीन तभी हो सकता है जब मैं खुद आपके सामने अपने हाथों से कंचन और कमला की हत्या करूं तो मुझे यह भी मंजूर है। मैं अच्छी से जानता हूं कि अगर इस वक्त मेरे ऊपर से आपका सहारा भी हट गया तो मुझे नाकामी, बेइज्जती और जिल्लत के सिवाय कुछ भी तो इस भरी दुनिया में हाथ नहीं लग सकेगा।'' - ''तो फिर सबसे पहला काम इनकी हत्या करो।'' दलीपसिंह ने हुक्म दिया।
शायद आप यह समझ रहे हों कि इस वक्त मेघराज कितना मजबूर हो गया है। वाकई अगर वह अपने हाथ से यह काम नहीं करता तो दुनिया में वह जीने के काबिल नहीं रहता। मजबूर होकर उसने अपनी कमर से तिलिस्मी खंजर को खींच लिया।
''नहीं मेघराज - तुम इनकी हत्या खंजर से नहीं करोगे।''
चौंककर पलटा मेघराज, बोला- ''क्या महाराज - ये तो तिलिस्मी खंजर है - फिर भला इससे मैं हत्या क्यों नहीं कर सकता?''
''क्योंकि हमारी इच्छा यही है।'' कहते हुए दलीपसिंह ने तख्त पर रखा वह पीतल का अपना खानदानी कलमदाल उठाया और उसे अपनी हथेली में इस तरह घुमाते हुए बोले, मानों उससे खेल रहे हों - ''ये हत्यायें तुम अपनी तलवार से कर सकते हो।''
दलीपसिंह की यह बात तो मुझे भी चौंका देने वाली थी। मैं भी नहीं समझा कि आखिर दलीपसिंह को उन दोनों की हत्या तिलिस्मी खंजर से होने देने में क्या ऐतराज है? आखिर वह तलवार से ही उन दोनों की हत्या क्यों करवाना चाहता है? मेरे दिमाग में जमे तरद्दुद को मेघराज ने अपने निम्न अल्फाजों में सवाल बनाकर जाहिर किया- ''करने को तो मैं इन दोनों की हत्या आपके हुक्म के मुताबिक कर दूंगा लेकिन आप यह किस सबब से कह रहे हैं, यह बात दिमाग में नहीं आई। आपको इनकी हत्या मेरे हाथों से ही करवानी है, फिर भला तिलिस्मी खंजर और तलवार से क्या फर्क पड़ता है?''
''इसके पीछे एक बहुत बड़ा सबब है, जो इस वक्त तुम्हारी समझ में नहीं आएगा।'' दलीपसिंह ने कहा- ''वक्त आने पर तुम्हें समझा देंगे।'' मेघराज ने ज्यादा बहस करने की बजाय चुपचाप तिलिस्मी खंजर अपनी कमर में वापस लगा लिया और म्यान से तलवार खींच ली। मेरे दिल का यह तरद्दुद अब भी तरद्दुद ही रह गया कि आखिर दलीपसिंह को उनकी हत्या तलवार से ही करवाने में दिलचस्पी क्यों है? खैर.. आगे कभी समझ में आया तो जरूर लिखूंगा। फिलहाल तो मैं वही हाल बयान करता हूं? जो इस वक्त मेरी आंखों के सामने है। मेघराज हाथ में नंगी तलवार लिये दोनों गठरियों की तरफ बढ़ा। तलवार मध्य में उसने दांतों के बीच कसकर दबाई और गठरियों को खोलने लगा।
गठरियों के खुलते ही एकाएक दलीपसिंह वोल पड़ा- ''ठहरो हम इनकी जांच कर लेना चाहते हैं।''
''कैसी जांच?'' चौंककर दारोगा ने पूछा।
''यही कि ये दोनों असली कंचन और कमला हैं कि नहीं।'
बड़े मायूस से लहजे में दारोगा बोला- ''बड़े दुःख की बात है महाराज कि एक गलत फहमी में आपने मुझसे अपना सारा यकीन ही खो दिया।''
लेकिन - दलीपसिंह माने नहीं।
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