ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 6 देवकांता संतति भाग 6वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
उन्होंने बेहोश कमला और कंचन के चेहरे पर बुकनी छिड़ककर, कमरे में रखे घड़े के पानी से अच्छी तरह धोया और अपनी पूरी तसल्ली कर लेने के बाद बोला- ''ठीक है - ये वे ही हैं -- अब तुम अपना काम कर सकते हो।''
''होश में लाकर या बेहोश को ही?'' मेघराज ने सवाल किया।
''बेचारी बेहोशी के आलम में मरेगी तो मरने का पता भी नहीं लगेगा।'' दलीपसिंह ने कहा-- ''इनके आखिरी वक्त में कम-से-कम इनके साथ इतनी भलाई तो करनी ही चाहिए कि इन्हें अपने मरने की खबर रहे। ये दूसरी बात है कि होश में आते ही मार दो।'' कहता हुआ दलीपसिंह तख्त पर आ बैठा और मेघराज की ओर देखकर बड़े अजीब ढंग से मुस्कराने लगा।
कुछ बोलने की बजाय मेघराज ने बटुए से लखलखा निकाला और कंचन की नाक के पास ले गया। कुछ ही देर बाद कंचन के जिस्म में हरकत होने लगी और उसके मुंह से आवाजें निकलने लगीं। मेघराज ने जल्दी से लखलखा बटुए में डाला और दायें हाथ में तलवार सम्भालकर जल्लाद की तरह उसके सामने खड़ा हो गया। कंचन ने आंखें खोल दीं। मेघराज दहाड़ा- ''उठ देख - तेरा भाई खड़ा है।''
''तू !'' कहने के साथ ही एकदम कंचन उठकर खड़ी हो गई- ''दुष्ट भाई -- अपने जीजा को मारना चाहता है?''
''फिलहाल तो बहन को मारना चाहता हूं।'' मेघराज धृष्टता के साथ खूनी लहजे में बोला।
''ओह!'' कंचन तख्त पर बैठे दलीपसिंह को देखकर बोली - ''तो तू वाकई इस दुश्मन से जा मिला है।''
''बेशक !' मेघराज बोला--- ''कमला ने तुमसे ठीक ही कहा था। दलीपसिंह को ही अपना साथी बनाकर मैं उमादत्त की जगह चमनगढ़ का राजा बनूंगा। यह खबर तुम्हें और कमला को वक्त से पहले ही लग गई। इसी का अंजाम है कि आज तुम्हारी गर्दन तलवार की धार पर है।
''तुम अपने नापाक इरादों में कभी कामयाब नहीं हो सकोगे।'' कंचन चीख पड़ी- ''मैं तुम्हारे..।'' और--
मेघराज का हाथ तेजी से चला। एक सायत के लिए तलवार चमकी। फिर चीख ! कंचन की आखिरी चीख! न जाने वह आगे क्या कहना चाहती थी? उसके अलफाज उसके साथ ही चले गए। चीख के साथ -- खून का फब्वारा!
सिर से धड़ जुदा!
खून के छींटे मेघराज के लिबास पर आए। तलवार लाल हो उठी। कई सायत तक सिर और धड़ अलग-अलग तड़पे!
फिर शान्ति!
कंचन मर चुकी थी! एक ही सायत में! मेरी आंखों के सामने। मैं कुछ भी नहीं कर सका! करता भी क्या? दिमाग ने कुछ काम नहीं किया! मेघराज के जरिए मुझे अपना भेद खुल जाने का भी डर था। फिर...मैं अकेला उन दोनों के सामने बहुत कमजोर था। दारोगा के पास तो तिलिस्मी खंजर भी था, उसकी मौजूदगी में तो वह एक साथ सौ आदमियों से भी ज्यादा ताकतवर था। कंचन की हत्या का वह दृश्य इतना वीभत्स था कि न चाहते हुए भी मेरी आंखें बंद हो गईं। आंखें खुलीं - तो एक ही पल पहले की जीती-जागती कंचन अब मृत थी।
कई सायत के लिए मेघराज और दलीपसिंह के बीच भी खामोशी छा गई।
''अब नम्बर कमला का है।'' इस खामोशी को दलीपसिंह ने तोड़ा।
अपने इस बयान को ज्यादा मुख्तसर के चक्कर में लम्बा न करके संक्षेप में ही लिख देता हूं कि कमला को भी लखलखा सुंघाकर होश में लाया गया। उसने अभी दो चार ही बातें कही थीं कि दुष्ट दारोगा मेघराज की खून से रंगी तलवार ने उसे भी कत्ल कर दिया। इस वक्त मुझे मालूम ह्रुआ कि दारोगा कितना जालिम है! अपनी बहन और प्रेमिका की इस वीभत्स ढंग से हत्या करने के वावजूद उसके चेहरे पर कसी तरह की कोई शिकन न आई थी। कमरे के बाहर अंधेरे में खड़ा मैं अपनी आंखों के सामने होते अत्याचार को देखने के लिए मजबूर था; कमला और कंचन की लाशों को धरती पर पड़ा देख मेरा दिल रो उठा।
लेकिन देखते रहने के अलावा मैं कर भी क्या सकता था?
''अब तुम्हारे इस गुनाह के बारे में मेरे अलावा बंसीलाल और जानता है।'' कमला की हत्या के बाद की छाई खामोशी के गाल पर भी पहले दलीपसिंह ने ही चपत मारी-- ''जब तक तुम बंसीलाल से वे खत और उसकी जान हासिल नहीं कर लेते, उस वक्त तक तुम बराबर खतरे में हो।''
''जी हां, यहां से निकलते ही मैं बंसीलाल से निपटूंगा।'' मेघराज ने कहा।
'वो तो सब ठीक है।'' दलीपसिंह ने कहा- ''लेकिन अब जरा तुम अपने मतलब की कुछ बातें सुनोगे।''
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