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देवकांता संतति भाग 6

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2057
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

सातवाँ बयान


पाठक, पिछले बयान में पढ़ आए हैं कि दारोगा मेघराज ने एक खत बंसीलाल को दिया। हमारे पाठकों को अच्छी तरह से याद होगा कि यह किस्सा रामरतन और चन्द्रप्रभा पिशाचनाथ (बख्तावरसिंह) को सुना रहे हैं, पाठक थ्यान रखें कि अभी तक उनमें से किसी ने भी यह नहीं बताया है कि इस वक्त कलमदान कहां पर है? वे केवल वही हाल सुना रहे हैं, जो खुद उन्होंने कलमदान से निकले कागजों में पढ़ा है। आप यह न समझें कि जो कुछ कलमदान के बारे में अब तक पढ़ आए हैं, उसी के डर से मेघराज उस कलमदान से इतना डरता था। अभी तक जो कुछ मेघराज की काली करतूतें लिखी जा चुकी हैं,वे तो कुछ भी नहीं। असल हाल तो आपको इस नए बयान में मिलेगा।

“दारोगा ने नौवें दिन वाले इस खत में दलीपसिंह के लिए क्या लिखा था?” पिशाचनाथ ने बख्तावरसिंह की आवाज में उतावलेपन से पूछा।

हम जानते हैं कि हमारे पाठक भी उस खत को पढ़ने के लिए बेचैन हैं। हम वह खत अव दो-चार लाइनों के बाद शुरू करने जा रहे हैं। पिशाचनाथ का सवाल सुनकर रामरतन बोला- ''हमने पिताजी का लिखा वह कागज पलटा। अगले पेज से ही दारोगा की लिखाई में लिखा हुआ खत शुरू होता था। हम दोनों रामरतन और चंद्रप्रभा ने वह खत पढ़ा! उसमें लिखा था-

प्यारे दलीपसिंह जी,

आज तो गजब ही हो गया है। ऐसा लगता है जैसे हमारे सारे किए-धरे पर पानी फिर गया है। आज जबकि मैं ये सोच रहा था कि आज के खत में मैं आपको यह खबर भेजूंगा कि आप कल से अपनी फौजें गुप्त रूप से चमनगढ़ में भेजना शुरू कर दें, क्योंकि मैं चार दिन बाद बगावत करने जा रहा हूं। मेरी ताकत यहां काफी बढ़ चुकी है और चार दिन बाद हम हर हालत में उमादत्त से ज्यादा ताकतवर होंगे--लेकिन उसकी जगह इस वक्त मुझे अचानक ही यह खत लिखना पड़ रहा है। मेरा दिल ही जानता है कि इस खत को लिखते वक्त मैं कितना डरा हुआ, भयभीत और चिंतित हूं। ऐसा लगता है, जैसे फांसी का फंदा मेरे गले में पड़ा हुआ है और किसी भी सायत मेरा अस्तित्व इस दुनियां से उठ सकता है।

कदाचित् आप भी चिंतित हो गए हों कि-मैं ये सब क्या लिखे जा रहा हूं? जो कुछ भी हुआ है - मुझे ऐसा लग रहा है खुद मैने अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारी है। शायद इस तरह आपको समझ में कुछ नहीं आएगा। मैं आज दिन का सारा हाल मुख्तसर में कह रहा हूं।

आज दिन के तसरे पहर के अंत की बात है - मैं कमला के पास गया। कदाचित आप यह न जानते हों कि कमला कौन है? कमला... यहां उमादत्त के महल की दासियों में से एक है- वह यहां की दूसरी दासियों से सुन्दर और चरित्रवान है। वह किसी शरीफ खानदान की लड़की है और किसी मजबूरी में यहां नौकरी कर रही है। हालाँकि आपको लिखने में मुझे शर्म आ रही है लेकिन जो हुआ है... वह आपको समझाने के लिए साफ लिखना बहुत जरूरी हो गया है। अगर गुस्ताखी हो तो माफ करें - बहुत ही शर्मिंदगी के साथ मुझे यहां लिखना पड़ रहा है कि मैं कमला से मुहव्बत करने लगा--- वह भी मुझसे मुहब्बत करने लगी थी - अपनी और उसकी मुहब्बत के बीच मुझे 'थी' लफ्ज लाना पड़ रहा है। उसका सबब आज दिन में हुई घटनाएं ही हैं--वर्ना मैं 'थी' की जगह है लिखता - मैं लिख चुका हूं कि हम दोनों आपस में मुहब्बत करते थे, लेकिन अभी तक मैंने उसे उमादत्त का तख्ता पलटने के बारे में कोई बात न बताई थी। हम दोनों आए दिन गुप्त ढंग से मिला करते थे। हमारी मुलाकात का किसी को पता न लग सके इसलिए हम एक गुप्त जगह पर मिलते थे। वैसे मैं यहां आपको यह भी बता देना ठीक समझता हूं कि उसकी और मेरी मुहब्बत में काफी फर्क था।

आप ये सोचते होंगे कि मैं - यानी मेघराज, जोकि राजा बनने जा रहा है - वह एक अदना-सी दासी से मुहब्बत करके क्या फायदा उठाना चाहता है? हमारी मुहब्बत में फर्क ये था कि वह-मुझसे पाक मुहब्बत करती थी और मैं उसके जिस्म से-उसने उस दिन तक मुझे अपने जिस्म को हाथ नहीं लगाने दिया, जब तक कि तीन बार कहकर मैंने उससे यह वादा न कर लिया कि मैं उसी से शादी करूंगा। अपना मतलब सीधा करने और काम निकालने की गरज से मैंने यह वादा भी किया और इसके बाद मैं छुप-छुपकर अपना मतलब सीधा करता रहा। वह मुझसे हर रोज यही सवाल करती कि मैं उससे शादी कब करूंगा? मैं टालता रहता था। उसका यह सवाल सुनते-सुनते मेरे कान पक गए थे।

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