लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 6

देवकांता संतति भाग 6

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2057
आईएसबीएन :0000000

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

आज मैंने फैसला किया कि कमला को इसी चक्कर में उलझाकर मैं उसे उमादत्त के खिलाफ अपने हक में कर लूं, सो मैंने अपनी बात उसके सामने इस ढंग से शुरू की- ''कमला तू हर रोज पूछा करती है ना कि हमारी शादी कब होगी--आज मैं इसका जवाब दे सकता हूं।''

कमला ने मेरी तरफ ऐसे ढंग से देखा - मानो उसे कभी ख्वाब में भी मेरे मुंह से ऐसे लफ्जों की आशा न हो। उसकी आंखें चमक उठीं। चंद्रमा के मुखड़े पर लाली दौड़ गई। वह मेरी ओर इस तरह देखने लगी जैसे दीवानी हो गई हो, बोला- ''सच!''

'हां!'' मैंने कहा- ' बिल्कुल सच - वह वक्त आ चुका है जिसका कि मुझे इंतजार था।''

'कब? कहां? किस तरह मेरे साथ शादी करोगे?'' खुशी से झूमती हुई कमला ने एक साथ कई सवाल मुझसे कर दिए!

'तुम चाहो तो इसी हफ्ते में हमारी शादी हो सकती है।'' मैंने कहा।

'' मैं चाहूं तो?'' हल्के से तरद्दुद के साथ कमला बोली-- ''मैं भला क्यों न चाहूंगी? मैं तो चाहती हूं कि कल की होती आज हो जाए। अब मेरे पास अपना रखा ही क्या है? मैं वह सबकुछ तो तुम्हें पहले ही सौंप चुकी हूं - जो हर लड़की अपने पति को सौंपती है।''

'तो फिर इसका मतलब है कि तुम मुझे अपना पति मान चुकी हो?''

''मानने का क्या मतलब - तुम हो ही मेरे पति।'' कमला बोली-- ''एक बार आपकी होने के बाद अब भला मैं किसकी हो सकती हूं?'

''मैं भी तुम्हें अपनी पत्नी मान चुका हूं।'' उमादत्त से तोड़ने और उसे अपने हक में करने के लिए मैंने उसे अपनी बातों के जाल में फंसा लिया- ''दिल से तो हम पति-पत्नी हैं ही, लेकिन जमाने के सामने भी हम हफ्ते के आखिरी दिन तक शादीशुदा हो जाएंगे।' लेकिन उससे पहले ही तुम्हें मेरा एक काम करना होगा। - 'आपकी पत्नी होने के नाते - आपका काम करना तो मेरा धर्म है।'' कमला पूरी तरह मेरे जाल में फंसती हुई बोली- ''मैं, आपके चरणों की धूल आपके किसी काम आ सकूं तो यह मेरे लिए सौभाग्य और गर्व की बात होगी - आप हुक्म तो कीजिए?''

''मैं एक ऐसा काम करने जा रहा हूं जिससे एकदम मेरी काफी तरक्की हो जाएगी। मैं सोचता हूं कि वह काम पूरा करने के बाद ही मैं तुमसे जमाने के सामने शादी करूं। मगर उस काम में थोड़ी-सी तुम्हारी मदद की जररत है।''

''आप हुक्म तो कीजिए-मैं हर तरह से आपकी मदद करूंगी।''

'अच्छा एक बात बताओ।'' मैंने कहा-- ''रानी बड़ी होती है या दारोगन?''

'रानी।''

'तुम रानी बनना चाहोगी या दारोगन?''

'क्या मतलब?'' चौंकी कमला- ''ये तो ठीक है कि रानी हर हाल में दारोगन से बड़ी होती है लेकिन जो लोग मुहब्बत करते हैं वे इस किस्म की बातें नहीं देखा करते। मैं तो आपसे मुहब्बत करती हूं। आपके सामने अगर कोई राजा भी मेरा हाथ मांगे तो मैं आपको ही चुनूं।''

'लेकिन अगर मैं ही राजा बन जाऊं?''

मेरे इन अलफाजों का कमला पर ऐसा असर हुआ - मानो अचानक उसे किसी बिच्छू ने डंक मारा हो। उसने मेरी तरफ देखा, बोली-- ''अगर आप राजा बन जाएं तो इससे अच्छी क्या बात हो, लेकिन मैं समझी नहीं कि एक हफ्ते में आप किस तरह कहां के राजा बन जाएंगे?''

'चमनगढ़ के।''

ये लफ्ज सुनकर तो कमला उछल ही पड़ी, फिर बोली- ''क्या - चमनगढ़, क्या राजा उमादत्त अपना सब कुछ आपको सौप रहे हैं?''

'नहीं-बल्कि मैं अपनी तरकीब से एक हफ्ते के अंदर आसानी से ही चमनगढ़ का राजा बन सकता हूं।''

कमला के आश्चर्य का ठिकाना न था। वह वोली- ''मैं मतलब नहीं समझी - जरा साफ-साफ कहिए कि आप क्या कहना चाहते हैं?''

जवाब में मैंने उसे सारी बातें म्रुख्तसर में साफ-साफ बता दीं। सुनते-सुनते न जाने उसके चेहरे पर तरद्दुद के कितने भाव आए। वह मुझे इस तरह देख रही थी, मानो वद जो कुछ सुन रही हो, उस पर उसे यकीन न हो। अपनी सारी योजना बताने के बाद मैंने उससे कहा- ''इस तरह से हम इसी हफ्ते में बड़ी आसानी से यहां बड़े राजा बन सकते हैं। आज ही हम दलीपसिंह को खत लिखेंगे कि वह अपनी फौजें हमारी मदद के लिए गुप्त ढंग से चमनगढ़ भेज दें। इस तरह से राजा बनने से हमें कोई नहीं रोक सकता। तुम सोच सकती हो कि हमारी --कामयाबी के बाद तुम दारोगा मेघराज की नहीं बल्कि राजा मेघराज की पत्नी होगी। तुम चमनगढ़ की रानी कहलाओगी। बोलो - क्या तुम्हें ये तरकीब पसंद नहीं आई?''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book