ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 6 देवकांता संतति भाग 6वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
उस वक्त उस हॉल में उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था। गोमती दबे - पांव वंदना के पीछे आ गई और इससे पहले कि वंदना उसकी मौजूदगी के बारे में अहसास कर पाती, गोमती ने बेहोशी की बुकनी उसके मुंह पर दे मारी।
वंदना काफी फुर्ती से पीछे घूमी, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। वह लहराई और स्टीमर के फर्श पर पहुंचते-पहुंचते बेहोश हो गई।''
''अब मैं सारंगा का हाल यहां बयान करता हूं।'' गणेशदत्त बोला- 'सारंगा स्टीमर की गैलरी में पहुंचा ही था कि उसने देखा सुपर रघुनाथ गैलरी में खड़ा उस किश्ती को देख रहा था, जिस पर विकास गया था। सारंगा दबे पांव रघुनाथ की तरफ बढ़ा।
किंतु उसके पास पहुंचने से पहले ही रघुनाथ को उसकी मौजूदगी का अहसास हो गया।
रघुनाथ तेजी से पलटा। सारंगा ने भी उसी फुर्ती से अपनी तलवार खींच ली।
''कौन हो तुम?'' रघुनाथ एकदम बोला।
मगर - सारंगा ने विलम्ब नहीं किया। उसने बेहोशी के अर्क में बुझी तलकर की नोक रघुनाथ के पैर में घुसा दी। रघुनाथ के पैर में घाव तो ज्यादा नहीं हुआ, लेकिन वह वहीं बेहोश होकर जरूर गिर पड़ा। अब वह सारंगा के कब्जे में था।
बलभद्र तीसरे रास्ते से अंदर की तरफ बढ़ रहा था। उस वक्त वह एक कक्ष में से गुजर रहा था, जब अचानक उसके कानों में बंदर की किलकारी की आवाज पड़ी। उसने चौंककर म्यान से तलवार निकालने के लिए हाथ मूठ की तरफ बढ़ाया। अभी ठीक तरह उसका हाथ मूठ पर पहुंचा भी नहीं था कि एक बंदर उसके सिर पर कूद पड़ा। अभी वह संभल भी नहीं पाया था कि बलभद्र के गाल पर एक जोरदार चांटा पड़ा।
बलभद्र की आंखों के सामने लाल-पीले तारे नाच उठे।
जब उसकी आंखों के सामने का अंधेरा कुछ कम हुआ तो उसने देखा - उसके ठीक सामने एक खूंटी पर बैठा हुआ धनुषटंकार उसे घूर रहा था। उसे देखते ही संभलकर बलभद्र ने म्यान से तलवार खींच ली। जवाब में खूंटी पर बैठे धनुषटंकार ने भी जेब से चाकू निकाला और खटाक से खोल लिया।
बंदर की यह हरकत देखकर एक बार को तो बलभद्र तरद्दुद में पड़ गया - और उस वक्त तो उसके ताज्जुब का ठिकाना न रहा जब धनुषटंकार ने अपने कोट की दूसरी जेब से शराब का पव्वा निकाला - दांतों से ढक्कन खोला और मुंह से लगाकर गटागट पीने लगा।
पहले तो बलभद्र चकराया और फिर संभलकर उसने बड़ी फुर्ती से तलवार का वार धनुषटंकार पर किया - मगर, यहां बलभद्र ने बहुत बुरी चोट खाई। शराब का खाली पव्वा उसने बलभद्र के चेहरे पर खींचकर मारा और खूंटी पर से कूदकर फर्श पर जा गिरा।
पहली ही चोट से बलभद्र की खोपड़ी भिन्ना गई। पव्वा स्टीमर के फर्श पर गिरकर टूट गया। बलभद्र ने फिर एक बार खुद को संभाला और देखा - उसके सामने फर्श पर दो पैरों के सहारे, दाएं हाथ में खुला हुआ छुरा लिए हुए धनुषटंकार खड़ा था।
जैसे ही बलभद्र की नजरें उससे टकराईं - धनुषटंकार ने आंख मार दी। गुस्से से तिलमिलाकर बलभद्र ने तलवार का वार उस पर किया। इस बार उसका वह वार न केवल खाली गया -- बल्कि उसकी भुजा में धनुषटंकार का चाकू भी घुस गया। बलभद्र के कंठ से चीख निकल गई। धनुषटंकार के चाकू का घाव बलभद्र की उस भुजा में बना था, जिसमें तलवार थी। बलभद्र के हाथ से तलवार छूट गई। धनुषटंकार ने भी खुद ही अपना चाकू फेंक दिया। अब धनुषटंकार उसके कंधे पर बैठा उसे परेशान कर रहा था।
हालत यहां तक पहुंच गई कि बलभद्र के कंठ से चीखें निकलने लगीं।
उसकी चीखों को सुनकर गोमती वहां पहुंच गई। उसने जब यह हाल देखा तो अपने बटुए से एक गोला निकाला और कक्ष के फर्श पर दे मारा। इतने पर भी धनुषटंकार ने काफी हाथ-पैर फेंके, किंतु धुआं गजब की तेजी से फैला। धुआं साफ होते-होते धनुषटंकार फर्श पर बेहोश पड़ा था। 'वो साली गोमती नदी अगर बम न छोड़ती तो हमारा बंदर तीनों का आलूबुखारा बना देता।'' विजय बोला।
धुआ छंटने पर बलभद्र बोला- ''ओह गोमती - ये बंदर तो बहुत खतरनाक है। अगर तुम न आतीं तो यह मुझे जिंदा नहीं छोड़ता।''
''यह भी तो उसी जल्लाद विकास का शागिर्द है ना, जिसने मुर्गे की तरह रोशनसिंह को हलाल किया है।''
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