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देवकांता संतति भाग 6

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2057
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''क्या रोशनसिंह मारा गया?'' कक्ष में दाखिल होते हुए सारंगा ने पूछा।

''वे सब बातें बाद में होंगी।'' गोमती ने कहा- ''पहले काम पूरा कर लें। बलभद्र, तुम रघुनाथ, वंदना और इस बंदर की गठरी बनाओ। तब तक मैं और सारंगा किश्ती पर जाते हैं। हम उन तीनों को लेकर यहां आते हैं।'' कहकर गोमती सारंगा को साथ लेकर कक्ष से बाहर निकल गई। वे दोनों किश्ती पर पहुंचे। गोमती दबे पांव किश्ती के अंदर वाले भाग की ओर बढ़ी तो सारंग ने धीरे से उससे सवाल किया- ''आप इस तरह क्यों बढ़ रही हैं - वह तो बेहोश हो गया होगा?''

''कोई जरूरी नहीं है।'' गोमती ने कहा- ''सतर्क होकर अंदर जाने में नुकसान क्या है?''

''लेकिन आप जो उस कागज पर बेहोशी का अर्क छिड़ककर आई थीं।'' सारंगा ने कहा।

''ज्यादा मुमकिन तो यही है कि उसने ब्लैक ब्वाय और निर्भयसिंह के पास पड़े उस कागज को पढ़ा होगा। अगर पढ़ा होगा तो उस पर लगा बेहोशी का अर्क भी जरूर असर करेगा और विकास बेहोश हो गया होगा। लेकिन अगर उसने वह नहीं पढ़ा होगा तो...!''

''तो ये मतलब था!'' विजय बीच में बोला- ''जो कागज गोमती नदी ने उन दोनों बनावटी लाशों के पास छोड़ा था, उस पर बेहोशी का अर्क छिड़क रखा था - और इस बात का विकास को बिल्कुल भी ख्याल नहीं आया और धोखा खा गया।''

''जी हां।'' गणेशदत्त बोला और आगे सुनाना शुरू किया - जिस वक्त गोमती और सारंगा वहां पहुंचे तो विकास भी बेहोशी की हालत में ब्लैक व्वॉय और निर्भयसिंह के पास बेहोश पड़ा था। उन्होंने तीनों की गठरी बनाई और स्टीमर पर ले आए।

खाली किश्ती उन्होंने फिर स्टीमर के पीछे बांध ली। बलभद्र की भुजा के जिस्म पर दवाएं लगाकर, पट्टी बांध दी गई। अब एक खास तरद्दुद इन तीनों के सामने आया। वह यह कि स्टीमर कौन चलाएगा? तीनों में से कोई भी स्टीमर चलाना नहीं जानता था। जानते भी कैसे? उन्होंने तो स्टीमर देखा भी पहली ही बार शा। वे भला स्टीमर के इंजन की कार्य-विधि को क्या जानें? इस सवाल के सारंगा ने उठाया- ''लेकिन स्टीमर चलाएगा कौन?''

''जो पहले चला रहा होगा।'' गोमती ने कहा- ''वंदना तो हम जैसी ही है, अत: यह तो सोचना ही बेकार है कि वह स्टीमर चला रही होगी। जिस वक्त स्टीमर चल रहा था.. उस वक्त विकास छत पर था, अत: वह भी नहीं चला रहा था। बंदर तो चला ही नहीं सकता। बाकी बचे विकास के पिता यानी रघुनाथ.. साफ जाहिर है कि स्टीमर ये ही चला रहे होंगे।'

''वो तो ठीक है।'' बलभद्र बोला- ''लेकिन हम इनसे स्टीमर चलवाएंगे कैसे?''

''इनके पास हर वक्त हममें से कोई-कोई रहेगा। जहर से बुझी तलवार इनक पीठ से लगी रहेगी और इन्हें धमकी दी जाएगी कि ये हमारे कहे मुताबिक काम नहीं करेंगे तो हम इन्हें मार डालेंगे। इन पर हमें बराबर नजर रखनी होगी।''

इस तरह से.. रघुनाथ द्वारा स्टीमर मे यहां तक की यात्रा करके यह काफिला आज सुबह ही यहां पहुंचा है।'' गणेशदत्त ने कहानी खत्म की। -''गोमती, बलभद्र और सारंगा के मुंह से यह किस्सा सुनने के बाद दरबार में किस-किस तरह की बातें हुईं और आखिर में राजा उमादत्त का क्या हुक्म हुआ?'' गुरुवचनसिंह ने गणेशदत्त की तरफ देखते हुए सवाल किया- ''और क्या तुम उमादत्त के दिमाग का सबब जान सके?''

''इसका सबब तो मुझे मालूम नहीं हो सका.. लेकिन हां, वे बातें जरूर बता सकता हूं जो बातें दरबार में सुनकर आया हूं।''

''वे ही बयान करो।'' अलफांसे ने कहा।

और गणेशदत्त ने आगे कहना शुरू किया- ''पूरा हाल जानने के बाद राजा उमादत्त ने रोशनसिंह की लाश को दरबार में पेश करने का हुक्म दिया। हुक्म की तामील के मुताबिक जब लाश दरबार में पेश की गई तो उमादत्त के साथ-साथ सब आदमियों की चीखें निकल गईं। उस लाश को देखकर मेरा भी कलेजा दहल उठा। मैंने अपने जीवन में बहुत-सी लाशें देखी हैं. लेकिन वाकई इतनी वीभत्स लाश कभी नहीं देखी। उसे देखकर यह यकीन नहीं होता कि एक जीते-जागते इंसान की यह दुर्गति कोई इंसान कर सकता है। यह काम तो किसी दरिन्दे का ही लगता था। कुछ देर तक सभी आंखें फाड़े उस लाश को देखते रहे, फिर उमादत्त बोले-

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