ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 6 देवकांता संतति भाग 6वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''तुमने अभी मेरी पूरी बात सुनी ही कहां है जो तुम्हें फायदे का पता लगेगा।'' गोमती ने कहा - और फिर एक ऐसी तरकीब उसने बलभद्र और सारंगा को बताई, जिसमें विकास फंस गया और इन तीनों ने उसे स्टीमर पर मौजूद सभी लोगों और स्टीमर पर कब्जा कर लिया।”
''रील मत काटो।'' उसी तरह समाधि लगाए हुए बोला- ''फिल्म पूरी दिखाओ वर्ना पैसे नहीं मिलेंगे।''
''क्या मतलब?'' गणेशदत्त ने चौंककर कहा।
''इनका मतलब ये है कि वह तरकीब बताओ जिसके जरिए विकास इत्यादि गोमती के फंदे में फंसे।'' अलफांसे ने कहा।
''वह तरकीब मैं गोमती, बलभद्र और सारंगा की बातचीत में न बताकर आपको उसी ढंग से बताता हूं जिस ढंग से उन्होंने किया।''
गणेशदत्त ने फिर कहना शुरू किया - उस वक्त स्टीमर की चाल कुछ कम हो गई थी और विकास उसकी छत पर खड़ा हुआ टॉर्च की मदद से सागर में छाए अंधकार में देख रहा था। इससे ये तीनों समझ गए कि वह उन्हीं को तलाश कर रहा है। बलभद्र ने अपने बटुए में रखी अनेक दवाओं से वह लेप तैयार करके ब्लैक ब्वाय और ठाकुर निर्भयसिंह के बदन पर लगा दिया। सारंगा ने उनकी बेहोशी गहरी कर दी थी और अपनी तरकीब के मुताबिक उन्होंने वह रस्सी पकड़ी, जो किश्ती और स्टीमर को जोड़े हुए थी। उस रस्सी को पकड़कर तीनों पानी में कूद पड़े। किश्ती बलभद्र ने रस्सी से अलग कर दी। अब किश्ती पीछे छूटती चली गई और वे तीनों रस्सी के सहारे स्टीमर के साथ आगे बढ़ गए। तीनों ऐयारों को पानी तेजी से काट रहा था किंतु उन्होंने न केवल रस्सी पकड़ रखी थी बल्कि उसके सहारे-सहारे स्टीमर की तरफ भी बढ़ रहे थे। स्टीमर सागर में चारों ओर घूम-घूमकर किश्ती को तलाश कर रहा था। उस वक्त वे तीनों स्टीमर के पिछले भाग से चिपक चुके थे जब विकास को बिना मल्लाह के सागर में किश्ती चमकी। स्टीमर फौरन किश्ती के पास पहुंच गया और विकास किश्ती पर कूद गया। (वहां विकास ने क्या देखा यह तो पाठक पढ़ आए हैं, यहां तो हम इन तीनों की कार्यवाही का हाल लिख रहे हैं।)
विकास के किश्ती पर जाते ही वे तीनों स्टीमर पर चढ़ गए।
कहने की जरूरत नहीं है कि वे तीनों पानी में बुरी तरह भीगे हुए थे। - ''विकास हमारी तरकीब में फंसकर स्टीमर पर जा चुका है।'' गोमती ने धीरे से उनके कान में कहा- ''अब वह खुद यहां नहीं लौट सकेगा। इस हालत में अब इस स्टीमर पर रघुनाथ, वंदना, रोशनसिंह और वह बंदर होगा। हम तीनों तीन तरफ से स्टीमर के अंदरूनी भाग में दाखिल होते हैं। अगर हममें से कोई भी उन तीनों को किसी एक ही जगह बैठे देख ले तो हमें बेहोशी के धुएं वाले गोले का इस्तेमाल करना है। इसलिए मेरी राय है कि हम तीनों को एक-एक बूंद वह अर्क पी लेना चाहिए, जिसके पीने से हममें से किसी पर भी गोले के धुएं का असर न हो।''
तीनों ने ऐसा ही किया और अलग-अलग रास्तों से स्टीमर के अंदरूनी भाग की ओर बढ़े।
''तुम बात को हाजमे की गोली के साथ हजम कर जाने में बहुत माहिर हो प्यारे लक्ष्मी-गणेश।'' विजय ने अपनी ही टोन में बोलकर उसे रोक दिया।
एक सायत के लिए तो गणेशदत्त चकराया, फिर बोला- ''क्या मतलब महाराज?''
''मतलब ये है प्यारे कि अभी-अभी तुमने कहा कि गोमती नदी ने अपने साथियों से कहा कि विकास अब खुद अपने पैरों पर चलकर किश्ती से स्टीमर पर नहीं आ सकेगा।'' विजय ने कहा- ''लेकिन इसके कारण को तुम हाजमे की गोली समझकर हजम कर गए - यानी कि वह बात उसने किस बूते पर कही थी?''
''यह भेद मेरी कहानी में आगे चलकर खुद ही खुल जाएगा।'' गणेशदत्त ने कहा।
''तब ठीक है।'' विजय किसी साधु की तरह गरदन हिलाता हुआ बोला- ''कथा जारी रखो।''
''इससे आगे का किस्सा उमादत्त के दरबार में गोमती, बलभद्र और सारंगा ने अपने-अपने बारे में अलग-अलग सुनाया था। मैं यहां अपने अलफाजों में क्रमवार ढंग से बताता हूं। पहले मैं गोमती का किस्सा आपको सुनाता हूं।'' कहते हुए गणेशदत्त ने गोमती का किस्सा सुनाया - जिस वक्त गोमती स्टीमर के बड़े कमरे के दरवाजे पर पहुंची तो उसने देखा - हॉल के बीचोबीच रोशनसिंह की नग्न एवं उल्टी लाश लटकी हुई थी।(उसका हाल यहां बयान करना मुनासिब नहीं है, क्योंकि पाठक वह सब उसी वक्त पढ़ आए हैं, जब विकास ने रोशनसिंह का यह हाल किया) उस बीभत्स लाश को देखकर एक बार को तो गोमती की आंखों में आंसू आ गए। उस लाश के पास ही खड़ी वंदना उसे ऐसे देख रही थी, मानो उसे रोशनसिंह की इस हालत का बेहद अफसोस हो।
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