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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

विकास... जिससे मौत भी पनाह मांगती है।

सनसनाती तेज सागरीय हवा के झक्खड़ों ने उसके जिस्म को कंपकंपा दिया। खिड़की पर जमे हुए हाथ एक ही क्षण में बर्फ के समान ठण्डे हो गए। क्रिन्तु उसके एक हाथ ने झपटकर स्टीमर के चारों ओर घूमने वाली राड पकड़ ली। उसी क्षण हथियारों की एक और गठरी उस केबिन की खिड़की को पार करके सागर के पानी में. गिरी और इसके साथ ही विकास के हाथों में जैसे बिजली भर गई। वह तेजी के साथ रॉड के सहारे केबिन की खिड़की की ओर बढ़ा।

खिड़की तक पहुंचने में उसे मुश्किल से एक मिनट लगा। उसने देखा... केबिन हथियारों से खाली हो चुका था। ब्लैक-ब्बॉय केबिन के दरवाजे की ओर बढ़ रहा था, जिसे कि उसने हथियार बाहर फेंकते हुए अन्दर से बन्द कर रखा था। लेकिन... विकास ने कुशल नट की तरह केबिन की खिड़की पकड़कर अन्दर की तरफ कलाबाजी खाई। वह धम्म-से केबिन के अन्दर जाकर गिरा। दरवाजा खोलने में व्यस्त ब्लैक-ब्वाय यह आवाज सुनकर पलटा।

''कौन हो तुम?'' विकास एकदम चीखा।

उधर, ब्लैक-ब्वाय बना हुआ रोशनसिंह समझ तुका था कि  उसका कोई भी बहाना अब चल नहीं सकेगा। अतः उसने बिना कोई जवाब दिए केबिन से बाहर स्टीमर की गैलरी में जम्प लगा दी। लेकिन... अभी वह बेचारा नहीं जानता था कि उसका पाला किस जिन्न से पड़ा है। विकास ने चीते की तरह उसके पीछे जम्प लगाई और अभी वह गैलरी में दो-चार कदम ही भाग पाया था कि विकास ने उसे जा दबोचा।

''भागता कहां है बेटे... अपने काम का इनाम तो ले जा!'' इन शब्दों के साथ ही उसने ब्लैक-ब्वाय का कॉलर पकड़कर पीछे खींचा। वह अभी सम्भल भी नहीं पाया था कि विकास का फौलादी दुहत्थड़ उसकी गरदन पर पड़ा।

उसके मुंह से एक इतनी जोरदार चीख निकली.. कि पूरे स्टीमर में गूंज उठी और इस चीख के साथ ही वह मुंह के बल फर्श पर गिरा। अगर इस समय वह कुछ कहने की स्थिति में होता तो यही कहता कि इस लड़के जैसा फौलादी हाथ दुनिया में किसी दूसरे आदमी का नहीं हो सकता। लेकिन इसका क्या किया जाए कि वह बताने की हालत में ही नहीं था। उसका दिमाग तो उस समय सुन्न-सा हो गया। मुंह के बल फर्श पर गिरने के बाद जब उसे फिर कुछ होश-सा आया तो उसने महसूस किया... किसी ने उसके बाल पकड़ रखे थे और स्टीमर के फर्श पर उसे खदेड़ता हुआ ले जा रहा था।

और सच था भी यही.. वास्तव में विकास उसे इसी ढंग से स्टीमर के हॉल की ओर ले जा रहा था।

उधर, धनुषटंकार तो इन्जन की आवाजों के कारण उसकी चीख को सुन नहीं सका। लेकिन स्टीमर के हॉल में बैठे हुए सुपर रघुनाथ और वंदना बुरी तरह चौंक पड़े। वे दोनों एक झटके के साथ अपने स्थानों पर खड़े हुए। अभी वे इस चीख के बारे में कुछ सोचने की कोशिश कर ही रहे थे कि ब्लैक-ब्वाय को खदेड़ता हुआ विकास गैलरी से हॉल में ले आया। वंदना तो देखते ही हैरान रह गई, जबकि रघुनाथ चीखा-

''विकास... ये क्या बद्तमीजी है?''

''नहीं डैडी!'' विकास उसका गिरेबान पकड़ उसे उठाता हुआ - ''इसे कहते हैं तमीज!''

कहने के साथ ही विकास के एक ही घूंसे ने उसके चेहरे का भूगोल बदलने के साथ-साथ उसे कई फुट उछालकर पीछे भी फेंक दिया। इस बार उसके कंठ से एक और चीख निकल गई और साथ ही उसकी नाक और मुंह से खून बहने लगा। विकास की इस हरकत पर रघुनाथ को ताव आ गया। वह फुर्ती के साथ विकास के सामने आया और चीखा- ''होश ठिकाने करो विकास... ये मत भूलो कि ये कौन है?''

और विकास!

वह तो खूनी हो उठा था। ऐसे मौके पर भला वह किसकी सुनता था! उसने अंगारों की तरह दहकती आंखों से रघुनाथ को घूरा... चेहरा किसी भट्ठी की तरह लाल सुर्ख हो रहा था। उसके चेहरे पर वहशीपन था। विकास... रघुनाथ से लम्बा... लड़के ने रघुनाथ को एक जोरदार धक्का दिया ओर साथ ही गरजा- ''हट जाओ डैडी.. ये वो नहीं जो आप समझ रहे हैं.. यह कोई दुश्मन है और दुश्मन के लिए विकास क्या है.. यह आप जानते हैं।''

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