ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 4 देवकांता संतति भाग 4वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
यह यात्रा जारी किए हुए उन्हें लगभग तीन घण्टे गुजर गए थे। इस वक्त रात के बारह बजे का समय था... सागर अंधेरे में डूबा हुआ था... केवल स्टीमर के सामने का माहौल प्रकाशमान था। यूं तो सर्वत्र सन्नाटा ही था, किन्तु स्टीमर की आवाज अपनी क्षमतानुसार उससे लड़ रही थी। इस वक्त विकास और धनुषटंकार चालक-कक्ष में थे। वंदना और रघुनाथ हॉल में बैठे हुए कुछ बातें कर रहे थे और ब्लैक-ब्वाय अपने केबिन में जाकर सो चुका था। चालक-कक्ष में बैठे हुए धनुषटंकार के होंठों पर सिगार लटक रहा था और वह पूरी सावधानी के साथ स्टीमर चला रहा था... विजय इत्यादि का स्टीमर उनसे आगे था। उन्हें गौरवसिंह रास्ता बताता जा रहा था... इसलिए वंदना द्वारा रास्ता बताए जाने की अभी कोई जल्दी नहीं थी। धनुषटंकार का काम केवल ये था कि वह स्टीमर को आगे वाले स्टीमर के पीछे लगाए रखे। काफी देर से विकास उसी के पास बैठा हुआ ताजी-ताजी दिलजलियां सुना रहा था। लेकिन धनुषटंकार था कि बोर होने का नाम नहीं लेता । वह हर दिलजली की समाप्ति पर किलकारी मारकर खुश होता और गूंगे बच्चे की तरह संकेत से उसे और सुनाने के लिए कहता। इस बार विकास ने उसे बोर करने के लिए ही उल्टी-सीधी तुक कही, तब भी उसने अपनी वही क्रिया दोहरा दी। इस बार तो विकास खुद ही बोर हो उठा और बोला- ''अबे जाओ चेले प्यारे... तुम्हें असली-नकली चीजों की पहचान ही नहीं है।''
यह कहकर वह चालक-कक्ष से बाहर निकल आया।
धनुषटंकार किलकारी मार-मारकर उसे रोकने की कोशिश करता रहा, किन्तु विकास इस मामले में कई क्लास ऊंचा था। वह इस तरह बाहर निकल आया मानो धनुषटंकार की कोई किलकारी उसके कान तक पहुंची ही नहीं है।
चालक-कक्ष से निकलकर विकास सीधा बाथरूम की ओर बढ़ गया। बाथरूम में खड़ा वह उस समय पेशाब कर रहा था, जब उसने एक विशेष आवाज सुनी। पहले तो उसकी समझ में नहीं आया कि यह कैसी आवाज है। किन्तु ऐसा महसूस अवश्य हुआ था कि स्टीमर से पानी के कटने और स्टीमर की आवाज के अलावा इन दोनों आवाजों से अलग उसे कोई तीसरी आवाज आई थी।
एक बार को तो विकास ने इस आवाज को अपने कानों का भ्रम समझा, लेकिन फिर भी उसके कान किसी भी आवाज को सुनने के लिए सजग थे।
अचानक... फिर वैसी ही आवाज हुई।
विकास की समस्त इन्द्रियां एकदम सतर्क हो गईं। इस बार वह भांप गया कि यह ऐसी आवाज है, जैसी पानी में किसी भारी चीज के गिरने अथवा किसी आदमी के पानी में कूदने से होती है। एक ही पल में लड़का आवश्यकता से अधिक सतर्क नजर आने लगा।
इस बार उसके कान आवाज की दिशा नोट करने के लिए तैयार थे। हालांकि विकास इतना शैतान था कि एक बार की आवाज से वह सबकुछ पता लगा सकता था। लेकिन ये आवाज स्टीमर और स्टीमर द्वारा पानी के कटने की आवाज के कारण इतनी धीमी आती थी कि एक ही बार में यह सब नोट करना असम्भव ही था।
और... इस बार जैसे ही आवाज हुई, उसके कानों ने अपना काम किया और बिजली की-सी गति से वह एकदम बाथरूम की उस खिड़की की तरफ झुक गया जो सागर की ओर खुलती थी। उसने गरदन बाहर निकालकर आवाज की दिशा में देखा!
और... लड़के की आंखों में खून उतर आया।
उसने देखा--बाथरूम के बराबर वाले केबिन की सागर की ओर खुलने वाली खिड़की खुली हुई थी। केबिन में जलते बल्ब का प्रकाश खिड़की का आकार लेकर स्टीमर के साथ-साथ पानी पर चल रहा था। साथ ही एक इन्सान की परछाईं भी पानी पर पड़ रही थी। परछाईं साफ बता रही थी कि केबिन में मौजूद आदमी जल्दी-जल्दी कुछ कर रहा है। उसे याद आया-बराबर वाले केबिन में तो हथियार हैं।
यह ख्याल आते ही लड़का एकदम बाथरूम की खिड़की पकड़कर दूसरी तरफ झूल गया।
दूसरी तरफ... जिधर मौत थी!
स्टीमर से कटकर गरजता हुआ सागर का खारा पानी और बीच सागर की अतल गहराई।
जरा-सी चूक से अगर खिड़की से हाथ हट जाए तो किसी को यह भी पता न लगे कि विकास रह गया है और स्टीमर उसे बीच सागर में ही छोड्कर आगे बढ़ जाए। लेकिन... अगर वह इन सब बातों को सोचे तो उसे विकास कौन कहे?
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